एकमुखी हनुमत्कवचम | Ekmukhi Hanuman Kavach |

 

एकमुखी हनुमत्कवचम

एकमुखी हनुमत्कवचम



यह कवच भोजपत्र के ऊपर, ताड़पत्र पर या लाल रंग के रेशमी वस्त्र पर

त्रिगन्ध की स्याही से लिखकर कण्ठ या भुजा पर घारण करना चाहिये |

इसे त्रिलोक के ताबीज में भर कर धारण करना लाभकारी रहता है |

यह कवच प्रभु श्री रामचन्द्र के द्वारा ' ब्रह्माण्ड पुराण ' में व्यक्त हुआ है |

उनका कवच है कि यह कवच धारक की समस्त कामनायें पूर्ण करता है |


रविवार वाले दिन पीपल वृक्ष के निचे बैठ कर इसका पाठ करने से धन की वृद्धि शत्रुओं की हानि हुआ करती है |

इस कवच को लिख कर फ्रेम करवा कर पूजन स्थल पर रखने से इसकी पंचोपचार से पूजा करने पर शत्रु ह्रास |

साधक का मनोबल बढ़ता है | रात्रि के समय दस बार इसका पाठ करने से मान - सन्मान उन्नति प्राप्त होती है |

अर्द्धरात्रि के समय जल में खड़े होकर सात बार पाठ करने से क्षय, अपस्मारादि का शमन होता है |

इस पाठ को तीनों संध्याओं के समय प्रतिदिन जपते हुए तीन मास व्यतीत करता है उसकी इच्छामात्र से शत्रुओं का हनन होता है | लक्ष्मी की प्राप्ति होती है | इसके साधक के पास भूत - प्रेत नहीं पाते हैं |


एकमुखी हनुमान कवचम


|| ईश्वर उवाच ||

एकदा सुखमासीनं शंकरं लोकशंकरम् |

प्रपच्छ गिरिजा कान्तं कर्पूरधवलं शिवं ||


|| पार्वत्युवाचः ||

भगवान देवदेवेश लोकनाथ जगत्प्रभो,

शोकाकुलानां लोकानां केन रक्षा भवेद्भव ||


संग्रामे संकटे घोरे भूत प्रेतादि के भये |

दुःख दावाग्नि संतप्तचेतसाँ दुःखभागिनाम् ||


|| महादेव उवाचः ||

श्रणु देवी प्रवक्ष्यामि लोकानाँ हितकाम्यया |

विभीषणाय रामेण प्रेम्णाँ दत्तं यत्पुरा ||

कवच कपिनाथस्य वायुपुत्रस्य धीमतः |

गुह्यं तत्ते प्रवक्ष्यामि विशेषाच्छणु सुन्दरी ||


|| विनियोगः ||

अस्य श्री हनुमान कवच स्तोत्र मन्त्रस्य श्री रामचंद्र

ऋषिः श्री वीरो हनुमान परमात्माँ देवता, अनुष्टुप छन्दः,

मारुतात्मज इति बीजम, अंजनीसुनुरिति शक्तिः, लक्ष्मण

 प्राणदाता इति जीवः,श्रीराम भक्ति रिति कवचम,

लंकाप्रदाहक इति कीलकम मम सकल कार्य सिद्धयर्थे जपे

विनियोगः |


|| करन्यासः || 

ह्राँ अंगुष्ठाभ्याँ नमः |

ह्रीं तर्जनीभ्याँ नमः |

ह्रूं मध्यमाभ्याँ नमः |

ह्रैं अनामिकाभ्याँ नमः |

ह्रौं कनिष्ठिकाभ्याँ नमः |

ह्रंः करतल करपृष्ठाभ्याँ नमः |


|| हृदयादिन्यास ||

अंजनी सूतवे नमः हृदयाय नमः |

रुद्रमूर्तये नमः  शिरसे नमः |

वातात्मजाय नमः  शिखायै वौषट |

रामभक्तिरताय नमः कवचाय हुम् |

वज्रकवचाय नमः नेत्रत्रयाय वौषट |

ब्रह्मास्त्र निवारणाय नमः अस्त्राय फट |


ध्यायेद बालदिवाकरं द्युतिनिभं देवारिदर्पापहं

देवेन्द्र प्रमुख प्रशस्तयशसं देदीप्यमानं रुचा |

सुग्रीवादि समस्त वानरयुतं सुव्यक्ततत्वप्रियं

संरक्तारुण लोचनं पवनजं पीताम्बरालङ्कतं ||


उद्यन्मार्तण्ड कोटि प्रकट रुचियुतं चारुबीरासनस्थं

मौजीं यज्ञोपवीताऽऽभरण रूचि शिखा शोभितं कुण्डलाढ़यं |

भक्तानामिष्टदम्नप्रणतमुनजनं वेदनाद प्रमोदं

ध्यायेद्देवं विधेय प्लवगकुलपतिं गोष्पदिभूतवर्धिम् ||

वज्राङ्ग पिङ्गकेषाढयं स्वर्णकुण्डल मण्डितम् |

उद्यदक्षिण दोर्दण्डं हनुमन्तं विचिन्तये ||

स्फटिकाभं स्वर्णकान्तिं द्विभुजं कृतांजलिम् |

कुण्डलद्वय संशोभि मुखाम्भोजं हरिं भजे


नमो हनुमते हनुमदाख्य रुद्राय सर्वदुष्ट जनमुख स्तम्भनं कुरु कुरु

ह्रां ह्रीं हूँ ठं ठं ठं फट स्वाहा

नमो हनुमते शोभिताननाय यशोऽलङ्कृताय अञ्जनी गर्भ सम्भूताय

रामलक्ष्मणनन्दकाय कपिसैन्य प्राकाशय पर्वतोत्पाटनाय सुग्रीवसाह्य

करणाय परोच्चाटनाय कुमार ब्रह्मचर्याय गम्भीर शब्दोदयाय

ह्रां ह्रीं ह्रूं सर्वदुष्ट ग्रह निवारणाय स्वाहा |

नमो हनुमते सर्वग्राहंभूत भविष्यद्वर्तमान दूरस्थ समीप स्थान छिन्धि छिन्धि

भिन्धि भिन्धि सर्वकाल दुष्ट बुद्धिमुच्चाटयोच्चाटयो परबलान क्षोभय क्षोभय

मम सर्व कार्याणि साधय साधय

ह्रां ह्रीं ह्रूं फट देहि शिव सिद्धि ह्रां ह्रीं ह्रूं स्वाहा |

नमो हनुमते पर कृत यन्त्र मन्त्र परहँकार भूत प्रेत पिशाच

पर दृष्टि सर्व तर्जन चेटक विद्या सर्वग्रह भयं निवारय निवारय

वध वध पच पच दल दल विलय विलय सर्वाणिकुयन्त्राणि

कुट्टय कुट्टय ह्रां ह्रीं ह्रूं फट स्वाहा |

नमो हनुमते पाहि पाहि एहि एहि सर्वग्रह भूतानां शाकिनी डाकिनीनां

विषमदुष्टानां सर्वेषामाकर्षय कर्षय मर्दय मर्दय छेदय छेदय

मृत्युन मारय मारय शोषय शोषय प्रज्वल प्रज्वल भूतमण्डल

पिशाचमण्डल निरसनाय भूतज्वर प्रेतज्वर चातुर्थिकज्वर

विष्णुज्वर महेशज्वर छिन्धि छिन्धि भिन्धि भिन्धि अक्षिशूल

पक्षशूल शिरोऽभ्यंतर शूल गुल्मशूल पित्तशूल ब्रह्मराक्षस

पिशाच कुलच्छेदनं कुरु प्रबल नाग कुल |

विषं निर्विषं कुरु कुरु झटति झटति

ह्रां ह्रीं ह्रूं फट सर्वग्रह निवारणाय स्वाहा |

नमो हनुमते पवनपुत्राय वैश्वानर पापदृष्टि चोरदृष्टि हनुमदाज्ञा स्फुर

स्वाहा ह्रां ह्रीं ह्रूं फट घे घे स्वाहा ||


|| श्रीराम उवाच ||

हनुमान पूर्वतः पातु दक्षिणे पवनात्मजः |

पातु प्रतीच्यां रक्षोघ्नः पातु सागरपारगः ||


उदीच्यामूर्ध्वगः पातु केसरी प्रियनन्दनः |

अधस्ताद विष्णुः भक्तस्तु पातु मध्यं पावनिः ||


अवान्तरः दिशः पातु सीता शोकविनाशकः |

लङ्काविदाहकः पातु सर्वापद्भ्यो निरन्तरम ||


सुग्रीव सचिवः पातु मस्तकं वायुनन्दनः |

भालं पातु महावीरो भ्रुवोर्मध्ये निरन्तरम ||


नेत्रेच्छायापहारी पातु नः प्लवगेश्वरः |

कपोले कर्णमूले पातु श्रीराम किङ्करः ||


नासाग्रमञ्जनीसुनू पातु वक्त्रं हरीश्वरः |

वाचं रुद्रप्रिय पातु जिह्वा पिङ्गल लोचनः ||


पातु दंतान फाल्गुनेष्टाश्चिबुकं दैत्यापादहा |

पातु कण्ठं दैत्यारिः स्कन्धौ पातु सुरार्चितः ||


भुजौ पातु महातेजाः करौ तो चरणायुधः |

नखान नखायुधः पातु कुक्षिं पातु कपीश्वरः ||


वक्षो मुद्रापहारी पातु पार्श्वे भुजायुधः |

लङ्काविभंजनः पातु पृष्ठदेशे निरन्तरम ||


वाभिं रामदूतस्तु कटिं पात्वनिलात्मजः |

गुह्यं पातु महाप्राज्ञो लिङ्गपातु शिवप्रियः ||


उरु जानुनी पातु लङ्का प्रासाद भञ्जनः |

जङ्घे पातु कपिश्रेष्ठो गुल्फौ पातु महाबलः ||


अचलोद्धारकः पातु पादौ भास्कर सन्निभः |

अङ्गान्यमित सत्वाढ्यः पातु पादांगुलिस्तथा ||


सर्वाङ्गानि महाशूरः पातु रामाणि चात्मवान |

हनुमत्कवच यस्तु पठेद विद्वान् विचक्षणः ||


एव पुरुषश्रेष्ठो भुक्तिं मुक्तिं विन्दति |

त्रिकालमेककालं वा पठेन्मासत्रयं सदा ||


सर्वानरिपुक्षणाजित्वा पुमानश्रियमाप्नुयात |

मध्यरात्रे जले स्थित्वा सप्तवारं पठेद यदि ||


 महाशूर सभी अंगों की,आत्मवार रोगों से सर्वदा रक्षा करें | जो विद्वान इस विचक्षण कवच का पाठ करता है वह भक्ति एवं मुक्ति को प्राप्त करता है | एक समय या तीनों समय प्रतिदिन जो साधक तीन मास तक इसका पाठ करता है वह क्षणमात्र में ही शत्रु वर्ग को जीत कर लक्ष्मी प्राप्त करता है | आधी रात के समय जल के मध्य स्थित होकर इसके सात पाठ करने से क्षय, अपस्मार, कुष्ठ तथा का निवारण होता है |


क्षयाऽपस्मार कुष्ठादि ताप ज्वर निवारणम |

अश्वत्थमूलेऽर्कवारे स्थितवा पठति यः पुमान ||


अचलाँ श्रियमाप्नोति संग्रामे विजयं तथा |

लिखित्वा पूजयेद यस्तु सर्वत्र विजयी भवेत् ||


यः करे धारयेन्नित्यं  पुमान श्रियमाप्नुयात |

विवादे द्यूतकाले द्यूते राजकुले रणे ||

 

दशवारं पठेद रात्रौ मिताहारो जितेन्द्रियः |

विजयं लभते लोके मानुषेषु नराधिपः ||


रविवार के दिन अश्वत्थ वक्ष की जड़ के पास बैठकर इसका पाठ करने से संग्राम में विजय तथा अचल लक्ष्मी प्राप्त होती है | इसे लिखकर फिर इसकी पूजा करने पर सर्वत्र विजय मिलता है |

इसे धारण करने से लक्ष्मी प्राप्त होती है |

 वाद - विवाद जुआ राज - घराने

एवं युद्ध में इसके दश पाठ करने से विजय प्राप्त होती है |

भूत प्रेत महादुर्गे रणे सागर सम्प्लवे |

सिंह व्याघ्रभये चोग्रे शर शस्त्रास्त्र पातने ||


श्रृंखला बन्धने चैव काराग्रह नियन्त्रणे |

कायस्तोभे वह्रि चक्रे क्षेत्रे घोरे सुदारणे ||


शोके महारणे चैव बालग्रहविनाशनम |

सर्वदा तु पठेत्रित्यं जयमाप्नुत्यसंशयम ||


भूत, प्रेत, महादुख, रण, सागर, सिंह, व्याघ्र, शस्त्रास्त्र के मध्य फंस जाने पर, जंजीरो से बाँधे जाने पर, कारागार में जाने पर, आग में फँसने, शरीर में पीड़ा होने, शोकादि ब्रह्म ग्रह के निवारण के लिए इसे प्रतिदिन पढ़ना चाहिए


भूर्जे ( ) वसने रक्ते क्षीमे ताल पत्रके

त्रिगन्धे नाथ मश्यैव विलिख्य धारयेन्नरः ||


पञ्च  सप्त त्रिलोहैर्वा गोपित कवचं शुभम |

गले कटयाँ बहुमूले कण्ठे शिरसि धारितम ||

सर्वान कामान वाप्नुयात सत्यं श्रीराम भाषितं ||

भोजपत्र, लाल रेशमी वस्त्र, ताड़पत्र पर इस कवच को त्रिगन्ध की स्याही से लिखकर इसे धारण करना चाहिए | पाँच, सात तथा तीन लोहे के मध्य रखकर गले पर, कमर पर, भुजा पर या सिर पर धारण करने से धारक की समस्त अभिलाषाएँ पूर्ण होती हैं |

यह श्री राम जी ने कहा


|| एकमुखी हनुमत्कवच सम्पूर्णम ||

एकमुखी हनुमत्कवचम | Ekmukhi Hanuman Kavach | एकमुखी हनुमत्कवचम | Ekmukhi Hanuman Kavach | Reviewed by Bijal Purohit on 5:07 pm Rating: 5

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