स्वामिवश्यकरी शत्रुविध्वंसिनी स्तोत्रम् | Swamivashyakari Shatru Vidhwansini Stotram |

 

स्वामिवश्यकरी शत्रुविध्वंसिनी स्तोत्रम्

स्वामिवश्यकरी शत्रुविध्वंसिनी स्तोत्र



इसी स्तोत्र से विभीषण ने दुर्गा माँ को प्रसन्न किया |

भगवान् राम  को प्राप्त किया |

शत्रुओ का विध्वंस किया |

यह स्तोत्र स्वयं विभीषण कृत है उन्होंने भगवती दुर्गा की इसी स्तोत्र से उपासना कर माँ दुर्गा को प्रसन्न किया था |

भगवान्  श्रीराम की  प्राप्त की थी और स्वयं भगवान् के दास बने थे |

शत्रुओ का विध्वंस भी इसी साधना से किया था |

इस स्तोत्र के यथा शक्ति पाठ कर अगर उसका दशांश यज्ञ किया जाए तो सर्व कुछ समर्थ हो जाता है |


विनियोगः

अस्य श्री स्वामिवश्यकरी शत्रुविध्वंसिनी स्तोत्रमन्त्रस्य, पिप्पलायन ऋषिः,


अनुष्टुप् छन्दः

 श्री रामचन्द्रो देवता मम स्वामिप्रीत्यर्थं मत्सकाशात् शत्रोः पिशाचवत् पलायनार्थे जपे विनियोगः |

ऋष्यादिन्यासानन्तरम्


करन्यास -

रां अंगुष्ठाय नमः |

  रीं तर्जनीभ्यां नमः |

  रुं मध्यमाभ्यां नमः

रैं अनामिकाभ्यां नमः |

  रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः |

  रः करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः  |


 एवं हृदयादि न्यासं कृत्वा ||

रां हृदयाय नमः |

  रीं शिरसे नमः |

   रुं शिख्यायै वौषट | 

रैं कवचाय हुम्  |

  रौं नेत्रत्रयाय वौषट  |

  रः अस्त्राय फट् |


|| ध्यानम् ||

कालाम्भोधरकान्तिकायमनसं वीरासनाध्यासितं मुद्रां ज्ञानमयीं दधानमपरां हस्ताम्बुजे जानुनी |

सितां पार्श्वगतां शिरोरुहकरां विद्युन्निभं राघवं पश्यन्तीं मुकुटं गदादिविविधं कल्पोज्ज्वलांगीं भजे ||

एवं ध्यात्वा जपेत् ||


|| विभीषण उवाच ||

स्वामिवश्यकरी देवी प्रीतिवृद्धिकरी मम |

शत्रुविध्वंसिनी रौद्री त्रिशिरा सा विलोचनी || ||


अग्निर्ज्वाला रौद्रमुखी घोरदंष्ट्रा त्रिशूलिनी |

दिगंबरी मुक्तकेशी रणपाणिर्महोदरी || ||


एकराड् वैष्णवी घोरे शत्रुमुद्दीश्य ते विषम् |

प्रभुमुद्दीश्य पीयूषं प्रसादादस्तु ते सदा || ||


मन्त्रमेतज्जपेन्नित्यं विजयं शत्रुनाशनम् |

स्वामिप्रीत्यभिवृद्धिर्हि जपात्तस्य संशयः || ||


सहस्त्रं त्रितयं कृत्वा कार्यसिद्धिर्भविष्यति |

उपा६शांशतो होमः सर्षपैस्तंन्दुलैः घृतैः || ||


पञ्जखाद्ययुतैर्हुत्वा स्वामिवश्यकरी तथा |

ब्राह्मणान् भोजयेत्पश्चादात्माभीष्टफलप्रदः || ||


|| इति श्री स्वामिवश्यकरी शत्रुविध्वंसिनी स्तोत्र ||

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