श्री आदित्य हृदय स्तोत्र सरल | हिंदी अनुवाद सहित | Aditya Hriday Stotra Hindi |


श्री आदित्य हृदय स्तोत्र
सरल हिंदी अनुवाद सहित

श्री आदित्य हृदय स्तोत्र सरल | हिंदी अनुवाद सहित | Aditya Hriday Stotra Hindi |
श्री आदित्य हृदय स्तोत्र सरल 

भगवान आदित्य के हृदय स्वरूप इस 
आदित्यहृदय स्तोत्र का 
उपदेश अगस्त्यमुनि ने भगवान राम को दिया था और इसी के प्रयोग से 
रामचन्द्रजी ने रावण का वध प्राप्त करने की शक्ति प्राप्त की 
इस स्तोत्र के नित्य तीन पाठ करने से शत्रुबाधा शांत हो जाती है |
पितृ दोष निवारण होता है |
सूर्यनारायण की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है |
आरोग्य अच्छा रहता है |
आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है |
कोर्ट कचेरी क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है |
सरकारी नौकरी या सरकरी कामो में फायदा होता है |
अटके हुयी सभी कार्य सफल होते है |

श्री रामचंद्र भगवान् युद्ध से थककर चिंता करते हुए रणभूमि में खड़े थे ।
इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने आकर युद्ध के लिए खड़ा हो गया ।
यह देख भगवान् अगस्त्यमुनि, जो युद्ध देखने के लिए देवताओ के साथ आये थे,
वो मुनि भगवान् राम के पास जाकर बोले || 1 ||

मुनि ने कहा हे सबके ह्रदय में रमण करनेवाले महाबाहो राम ,
यह सनातन रमणीय गोपनीय स्तोत्र सुनो । 
वत्स इसके जाप से तुम युद्ध में अपने समस्त
शत्रुओ पर विजय पाओगे इसमें संदेह नहीं है || 2 ||

इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है 
"आदित्यहृदयस्तोत्र " ।
यह परम पवित्र और शत्रुओ का विनाश करनेवाला है ।
इसके जाप से सदा विजय प्राप्त होती है।
यह नित्य अक्षय और परम कल्याणमय है  ।
सम्पूर्ण मंगलो का भी मंगल है ।
इस स्तोत्र के पाठ से सभी पापो का विनाश होता है ।
यह चिंता और शोक को मिटाने वाला
 और आयु को बढ़ानेवाला है || 4-5 ||

भगवान् सूर्य अपनी अनंत किरणों से सुशोभित है ।
ये नित्य उदय होनेवाले देवता और असुरो से पूजनीय,
विवस्वान् नाम से प्रसिद्ध, प्रभाका विस्तार करनेवाला भास्कर 
और संसार के स्वामी भुवनेश्वर है । तुम इनका
 ( रश्मिमते,समुद्यते, देवासुरनमस्कृताय - 
विवस्वते,भास्कराय हुए भुवनेश्वराय नमः ) इन मंत्रो से पूजन करो  || 6 ||  

सम्पूर्णदेवता इन्ही के स्वरुप है। ये तेजो की राशि तथा अपनी किरणों से 
जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करनेवाले है । येही अपनी रश्मियों का 
प्रसार करके देवता और असुरो सहित सम्पूर्ण लोको का पालन करते है || 7 ||

येही ब्रह्मा, विष्णु, स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, कुबेर
काल, यम, चन्द्रमा, वरुण, पितर, वसु, साध्य
अश्विनीकुमार, मरुद्गण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा
प्राण, ऋतुओ को प्रकट करनेवाले तथा प्रभा के तेजोमय पुंज है || 8-9 ||

इन्ही के नाम आदित्य- अदितीपुत्र 
सविता-जगतोत्पत्ति करने वाले, खग-आकाश विचरण करनेवाले 
पूषा-पुष्टिदायक, गभस्तिमान-प्रकाशमान
सुवर्णसदृश, भानु-प्रकाशक
हिरण्यरेता-ब्रह्माण्ड उत्पत्ति  करनेवाले 
दिवाकर-अंधकार को दूर कर उजाला देनेवाले
हरिदश्व-हरे रंग के घोड़ेवाले,सहस्रार्चि-हजारो किरणों से सुशोभित
सप्तसप्ति-सातघोडोवाले, मरिचिमान-किरणों से सुशोभित
तिमिरोन्मथन-अंधकार का नाश करनेवाले, शभु-कल्याणकारक
त्वष्टा-जगत का संहार करनेवाले, मार्तन्डक-जीवन प्रदान करनेवाले
अंशुमान-किरण ग्रहण करनेवाले, हिरण्यगर्भ-ब्रह्माजी

शिशिर-सुखदेनेवाले,तपन-उष्णता पैदा करनेवाले
अहस्कर-दिनकर,रवि-प्रार्थना योग्य,अग्निगर्भ-अग्नि को गर्भ में धारण करनेवाले
अदितीपुत्र,शंख-व्यापक,शिशिरनाशन-शीत का नाशन करनेवाले
व्योमनाथ-आकाश के देवता,तमोभेदी-अंधकार को नष्ट करनेवाले
घनवृष्टि-घनी वृष्टि के कारण,अपां मित्र-जल को उत्पन्न करनेवाले
विन्ध्यवीथीप्लवङ्गम-आकाश में तीव्रवेग से चलने वाले
आतपी-घाम उतपन्न करनेवाले,मण्डली-समूह को धारण करनेवाले
मृत्यु-मौत के कारक,पिंगल-भूरे रंग वाले
सर्वतापन-सबको ताप देनेवाले,कवि-दूरद्रष्टा
विश्व-सर्वस्वरूप,महातेजस्वी-महान तेजवाले (सबसे ज्यादा तेजवाले )
रक्त-लाल,सर्वभवोद्भव-सब की उत्पत्ति के कारक  नक्षत्रादि के स्वामी )
विश्वभावन-जगत की रक्षा करनेवाले,द्वादशात्मा-बारह स्वरूपों से युक्त
( ये महातेजस्वी नामो से सूर्यदेव प्रसिद्ध है ) आपको नमस्कार है || 10 - 15 ||

पूर्वगिरि यानी उदयाचल और पश्चिमगिरि यानी अस्ताचल 
के रूप में आपको नमस्कार है। ग्रहो और तारो के स्वामी 
तथा दिन के अधिपति आपको नमस्कार है  || 16 ||

आप जय स्वरुप तथा विजय और कल्याण के दाता है ।
आपके रथ में हरे रंग के घोड़े रहते है आपको बारंबार
मेरा नमस्कार है । सहस्त्रो किरणों से सुशोभित भगवान् 
सूर्य आपको नमस्कार है । आप अदिति पुत्र आदित्य को 
नमस्कार है || 17 ||

उग्र,वीर,और सारंग सूर्यदेव आपको नमस्कार है ।
कमलो को अपना तेज देकर विकसित करनेवाले मार्तण्ड आपको नमस्कार है || 18 ||

आप ब्रह्मा,विष्णु,और शिव के स्वामी है (परात्पर रूप में )
सुर आपकी संज्ञा है,ये पूरा सूर्यमण्डल आपका स्वरुप है ।
सबको स्वाहा कर देनेवाले अग्नि भी आपका ही रूप है ।
आप रौद्ररूप धारण करनेवालव है, आपको नमस्कार है || 19 ||

अज्ञान और अंधकार के आप नाशक हो,जड़ता और शीतलता के कारक हो 
शत्रु का विनाश करने वाले हो आप, आपका स्वरुप अप्रमेय है ।
आप क्रुतग्नो का नाशकरने वाले हो,आप देव स्वरुप जो आपको नमस्कार है || 20 ||

आप तपाये हुये सोने की तरह हो,आप हरि और विश्वकर्मा हो,
तम के नाशक,प्रकाशस्वरूप जगत के साक्षी हो,
आपको नमस्कार है || 21 || 

 सूर्य ही सम्पूर्ण भूतो का संहार करने वाले है पालन करने वाले है ।
 सूर्य ही अपनी गर्मी से अपनी किरणों द्वारा वर्षा करते है || 22 ||

ये भगवान् सबके सो जाने के उपरांत भी जागते रहते है,
यही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री  को मिलने वाले देवता है || 23 ||

देवता,यज्ञ और यज्ञो के फल प्रदान करनेवाले भी यही है,
सम्पूर्ण जगत में होने वाली क्रियाओ के फल देने वाले यही है || 24 ||

राघव,विपत्ति में,कष्ट में,दुर्गम में,तथा किसी भी प्रकार के भय के अवसर पर
जो कोई भी मनुष्य इस सूर्यदेव के स्तोत्र का कीर्तन करता है उसे दुःख नहीं 
भोगना पड़ता || 25 ||

इसलिए तुम एकाग्रचित्त होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर की पूजा करो ।
इस आदित्य ह्रदय का तीन बार पाठ करने से तुम युद्ध में विजय प्राप्त करोगे || 26 ||

महाबाहो राम तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे ।
यह कहकर अगस्त्य मुनि वहा से चले गये || 27 ||

अगस्त्य मुनि का उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्री रामचंद्र जी का शोक दूर हो गया ।
उन्होंने प्रसन्नचित्त से आदित्यहृदय का पाठ किया स्तोत्र को धारण किया 
और तीन बार आचमन करके जाप किया । 
उसके बाद भगवान् श्री रामचंद्र ने धनुष उठाकर रावण की और देखा 
और उत्साह पूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढ़ने लगे । 
उन्होंने पूरा निश्चय कर रावण का वध करने को उद्यत हुए || 28-30 ||

उस समय देवताओ के मध्य में खड़े हुए भगवान् सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की और देखा और 
निशचरराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा रघुनन्दन । 
अब जल्दी करो || 31 ||

|| श्री वाल्मीकि रामायण में बताया हुआ श्री आदित्य ह्रदय स्तोत्र समाप्त हुआ || 

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