श्री महागणपति वज्र पञ्जर कवच | shri mahaganpati vajra panjar kavach |

 

श्री महागणपति वज्र पञ्जर कवच

श्री महागणपति वज्र पञ्जर कवच


श्रीरुद्रयामल तंत्र में स्थित यह कवच सर्वोत्तम है |

साधको को अवश्य कवच का पाठ करना चाहिए |

मंत्र एवं पूजन की सिद्धि के लिए |

गणेश उपासको के लिए यह रामबाण कवच है |


महादेवि गणेशस्य वरदस्य महात्मनः |

कवचं ते प्रवक्ष्यामि वज्रपञ्जरकाभिधम् ||


विनियोगः

अस्य श्री महागणपति वज्रपञ्जर कवचस्य श्रीभैरवऋषिः गायत्रं छन्दः श्रीमहागणपति देवता गं बीजं ह्रीं शक्तिः कुरु कुरु कीलकं वज्रविद्यादि सिध्यर्थे श्रीमहागणपतिः वज्रपञ्जर कवच पाठे विनियोगः |


ऋष्यादिन्यास :

श्रीभैरवऋषये नमः शिरसि |

गायत्र छन्दसे नमः मुखे |

श्रीमहागणपति देवतायै नमः ह्रदि |

गं बीजाय नमः गुह्ये |

ह्रीं शक्तये नमः नाभौ |

कुरूकुरू कीलकाय नमः पादयोः |

वज्रविद्यादि सिध्यर्थे महागणपति वज्रपञ्जर कवचपाठे विनियोगाय  सर्वाङ्गे |


करन्यास :

गां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः |

गीं तर्जनीभ्यां नमः |

गूं मध्यमाभ्यां नमः |

गैं अनामिकाभ्यां नमः |

गौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः |

गः करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः |


हृदयादिन्यास :

गां हृदयाय नमः |

गीं शिरसे स्वाहा |

गूं शिखायै वषट्  नमः |

गैं कवचाय हुम् नमः |

गौं नेत्रत्रयाय वौषट् नमः |

गः अस्त्राय फट् नमः |


गणपति ध्यान

विघ्नेशं विश्ववंद्यं सुविपुल यशसं लोकरक्षा प्रदक्षम्

साक्षात् सर्वापदासु प्रशमन सुमतिं पार्वती प्राणसूनुम् |

प्रायः सर्वसुरेन्द्रैः ससुरमुनिगणैः साधकैः पूज्यमानम्

कारूण्येनान्तरायामित भयशमनं विघ्नराजं नमामि ||


|| मूल कवच पाठ ||

  श्रीं ह्रीं गं शिरः पातु महागणपतिः प्रभुः |

विनायको ललाटं में विघ्नराजो भ्रुवौ मम ||


पातु नेत्रे गणाध्यक्षो नासिकां में गजाननः |

श्रुती मेंऽवतु हेरम्बो गण्डौ में मोदकाशनः ||


द्वै मातुरो मुखं पातु चाधरौ पात्वरिन्दमः |

दंतान् ममैक दन्तोऽव्याद् वक्रतुण्डोऽवताद्रसाम् ||


गांगेयों में गलं पातु स्कन्धौ सिंहासनोऽवतु |

विघ्नान्तको भुजौ पातु हस्तौ मूषक वाहनः ||


उरु ममावतान्नित्यं देवस्त्रि पुर घातनः |

हृदयँ में कुमारोऽव्याज्जयन्तः पार्श्व युग्मकम् ||


प्रद्युम्नो मेंऽवतात् पृष्ठं नाभिं शङ्कर नन्दनः |

कटिं नन्दिगणः पातु शिश्नं वीरेश्वरोऽवतु ||


मेढ्रे मेंऽवतु सौभाग्यो भृङ्गिरीटी गुह्यकम् |

विराटकोऽवतादूरु जानू में पुष्पदन्तकः ||


जङ्घे मम विकर्तोऽव्याद् गुल्फावन्त्य गणोऽवतु |

पादौ चित्त गणःपातु पादाधो लोहितोऽवतु ||


पादपृष्ठं सुन्दरोऽव्याद् नूपुराढ़यो वपुर्मम |

विचारो जठरं पातु भूतानि चोग्र रूपकः ||


शिरसः पादपर्यन्तं वपुःसप्त गणोऽवतु |

पादादि मूर्धपर्यन्तं वपुः पातु विनर्तकः ||


विस्मारितं तु यत्स्थानं गणेशस्तत् सदाऽवतु |

पूर्वे मां ह्रीं करालोऽव्यादाग्नेये विकरालकः ||


दक्षिणे पातु संहारो नैऋते रुरु भैरवः |

पश्चिमे मां महाकालो वायौ कालाग्नि भैरवः ||


उत्तरे मां सितास्योऽव्यादैशान्यामसितात्मकः |

प्रभाते शतपत्रोंऽव्यात सहस्त्रारस्तु मध्यमे ||


दंतमाला दिनान्तेऽव्यान्निशि पात्रं सदाऽवतु |

कलशो मां निशीथेऽव्यान्निशांते परशुस्तथा |

सर्वत्र सर्वदा पातु शङ्ख युग्मं मद्वपुः ||


राजकुले हौं हौं  रणभये ह्रीं ह्रीं कुद्यूतेऽवतात्

श्रीं श्रीं शत्रुगृहे शशौं जलभये क्लीं क्लीं वनान्तेऽवतु |

ग्लौं ग्लूं ग्लैं ग्लं गुं सत्वभीतीषु महा व्याघ्यार्तिषु ग्लौं गं गौं

नित्यं यक्ष पिशाच भूतफणिषु ग्लौं गं गणेशोऽवतु |


|| फलश्रुतिः ||

इतीदं कवचं गुह्यं सर्वतन्त्रेषु गोपितम् |

वज्रपञ्जर नामानं गणेशस्य महात्मनः ||


अङ्गभूतं मनुमयं सर्वाचारैक साधनम् |

विनानेन सिद्धिः स्यात् पूजनस्य जपस्य ||


तस्मात् तु कवचं पुण्यं पठेद्वा धारयेत् सदा |

तस्य सिद्धिर्महादेवि करस्था पारलौकिकी ||


यं यं कामयते कामं तं तं प्राप्नोति पाठतः |

अर्धरात्रे पठेन्नित्यं सर्वाभीष्ट फलं लभेत् ||


इतिगुह्यं सुकवचं महागणपतेः प्रियम् |

सर्वसिद्धिमयं दिव्यं गोपयेत् परमेश्वरि ||


|| इति श्रीरुद्रयामले श्रीमहागणपति वज्रपञ्जर कवच सम्पूर्णं ||

श्री महागणपति वज्र पञ्जर कवच | shri mahaganpati vajra panjar kavach | श्री महागणपति वज्र पञ्जर कवच | shri mahaganpati vajra panjar kavach | Reviewed by Bijal Purohit on 12:43 pm Rating: 5

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