सम्पूर्ण बगला प्रत्यङ्गिरा कवच | Sampurna Bagla Pratyangira Kavacham |

 

सम्पूर्ण बगला प्रत्यङ्गिरा कवच

सम्पूर्ण बगला प्रत्यङ्गिरा कवच


इस स्तोत्र में विशेष फल हेतु "ह्रीं" साथ "ह्लीं" को भी जोड़ा गया है |
 
इस स्तोत्र का विधान रुद्रयामल में शिव पार्वती संवाद से उजागृत हुआ है |
इस स्तोत्र के 100 पाठ से वायु भी स्थिर हो जाता है |
किन्तु कलिकाल में इसके 400 पाठ करने चाहिए |
अगर किसी ने कुछ कर दिया हो जैसे मारण,मोहन,उच्चाटन,स्तम्भन

आदि तो यह कवच का पाठ जरूर करना ही चाहिए |

इस कवच के पाठ से साधक के सभी कार्य सफल हो जाते है |

और शत्रु का विनाश हो जाता है |

सम्पूर्ण बगला प्रत्यङ्गिरा कवच


|| श्री शिवउवाच ||

अधुनाऽहं प्रवक्ष्यामि बगलायाः सुदुर्लभम्

यस्य पठन मात्रेण पवनोऽपि स्थिरायते ||


प्रत्यङ्गिरा तां देवेशि शृणुष्व कमलानने

यस्य स्मरण मात्रेण शत्रवो विलयं गताः ||


|| देव्युवाच ||

स्नेहोऽस्ति यदि में नाथ संसारार्णवतारक

तथा कथय मां शंम्भो बगला प्रत्यङ्गिरा मम ||


|| भैरव उवाच ||

यं यं प्रार्थयते मन्त्रो हठातं तमवाप्नुयात् |

विद्वेषणाकर्षणे स्तम्भनं वैरिणां विभौ ||


उच्चाटनं मारणं येन कर्तुं क्षमो भवेत् |

तत्सर्वं वदामि देवि तत् श्रुणु प्राणवल्ल्भे ||


|| सदाशिव उवाच ||

अधुना हि महादेवि परानिष्ठामतिर्भवेत् |

अतएव महेशानि किञ्चिन्न वक्तुर्महसि ||


|| पार्वत्युवाच ||

जिघांसन्तं जिघांसियान्न तेन ब्रह्महा भवेत् |

श्रुतिरेषा हि गिरीश कथं मां त्वं निनिन्दसि ||


|| शिव उवाच ||

साधु साधु प्रवक्ष्यामि शृणुष्वावहितानघे |

प्रत्यङ्गिरां बगलायाः सर्वशत्रु निवारिणीम् ||


नाशिनी सर्वदुष्टानां सर्वपापौघ हारिणीम् |

सर्वप्राणीहितां देवीं सर्वदुःख विनाशिनीम् ||


भोगदां मोक्षदां चैव राज्यं सौभाग्यदायिनीम् |

मन्त्रदोष प्रमोचनीं ग्रहदोष  निवारिणीम् ||


विनियोग:

अस्य श्री बगला प्रत्यंगिरा मंत्रस्य नारद ऋषिः स्त्रिष्टुपछन्दः प्रत्यंगिरा देवता 

ह्लीं बीजं हूँ शक्तिः ह्रीं कीलकं ह्लीं ह्लीं ह्लीं ह्लीं प्रत्यंगिरा मम शत्रु विनाशे विनियोगः


प्रत्यंगिरायै नमः प्रत्यंगिरे सकल कामान साधय मम रक्षां कुरु कुरु सर्वान 

शत्रुन खादय खादय,मारय मारय,घातय घातय, ह्रीं फट स्वाहा |

भ्रामरी स्तम्भिनी देवी क्षोभिणी मोहिनी तथा |

संहारिणी द्राविणी जृम्भणी रौद्ररूपिणी ||


इत्यष्टौ शक्तयो देवि शत्रु पक्षे नियोजताः |

धारयेत कण्ठदेशे सर्व शत्रु विनाशिनी ||


 ह्लीं (ह्रीं) भ्रामरी सर्व शत्रून भ्रामय भ्रामय  ह्लीं स्वाहा |

 ह्लीं (ह्रीं) स्तम्भिनी मम शत्रून स्तम्भय स्तम्भय  ह्लीं स्वाहा |

 ह्लीं (ह्रीं) क्षोभिणी मम शत्रून क्षोभय क्षोभय  ह्लीं स्वाहा |

 ह्लीं (ह्रीं) मोहिनी मम शत्रून मोहय मोहय  ह्लीं स्वाहा |

 ह्लीं (ह्रीं) सँहारिणी मम शत्रून संहारय संहारय  ह्लीं स्वाहा |

 ह्लीं (ह्रीं) द्राविणी मम शत्रून द्रावय द्रावय  ह्लीं स्वाहा |

ॐह्लीं (ह्रीं) जृम्भिणी मम शत्रून जृम्भय जृम्भय  ह्लीं स्वाहा 

 ह्लीं (ह्रीं) रौद्रि मम शत्रून रौद्रय रौद्रय  ह्लीं स्वाहा |


|| फलश्रुतिः ||

इयं विद्या महाविद्या सर्वशत्रु विनाशिनी |

धारिता साधकेन्द्रेण सर्वान् दुष्टान् विनाशयेत् ||


त्रिसन्ध्यमेकसन्ध्यं वा यः पठेत् स्थिरमानसः |

तस्य दुर्लभं लोके कल्पवृक्ष इव स्थितः ||


यं यं स्पृशति हस्तेन यं यं पश्यति चक्षुषा |

एव दासतां याति सारात्सारमिमं मनुम् ||


|| इति बगला प्रत्यङ्गिरा कवच ||

सम्पूर्ण बगला प्रत्यङ्गिरा कवच | Sampurna Bagla Pratyangira Kavacham | सम्पूर्ण बगला प्रत्यङ्गिरा कवच | Sampurna Bagla Pratyangira Kavacham | Reviewed by Bijal Purohit on 11:43 am Rating: 5

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