कनकधारा स्तोत्र की कथा | Kanakdhara Stotra ki Katha |
कनकधारा स्तोत्र की कथा
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| कनकधारा स्तोत्र की कथा श्री कनकधारा स्तोत्र अत्यंत और दुर्लभ है | किन्तु लक्ष्मी प्राप्ति के लिये यह रामबाण उपाय है | |
सिर्फ इतनाही नहीं किन्तु यह अपने आप में स्वयं सिद्ध है,ऐश्वर्य प्रदान करने में सर्वथा समर्थ है |
इस स्तोत्र का प्रयोग करने से रंक भी राजा बन सकता है यह कई लोगो ने अनुभव में भी पाया है और इसी कथा से संदर्भित होता है |
दरिद्र मनुष्य भी एकाएक धनोर्पार्जन करने लगता है |
यह अद्भुत स्तोत्र तुरंत फलदायी है |
किन्तु अगर यही स्तोत्र यंत्र के साथ किया जाये तो कहना ही क्या ? किन्तु इस यन्त्र को सिद्ध करने की विधि जटिल होने के वजह से बहुत कम लोग इसे जानते है |
यह यन्त्र व् स्तोत्र के विधान से व्यापारी व्यापार में वृद्धि करता है,दारिद्र्य का नाश हो जाता है,दुःख दरिद्रता का विनाश हो जाता है |
प्रसिद्ध शास्त्रोक्त ग्रन्थ में जिनका नाम "शंकर दिग्विजय" के "चौथे सर्ग में" इस कथा का उल्लेख है |
एक बार शंकराचार्यजी भिक्षा के हेतु घूमते-घूमते एक सद्गृहस्थ निर्धन ब्राह्मण के वहा पहुंच गए | और कहा "भिक्षां देहि"
किन्तु संयोग से इन तेजस्वी अतिथि को देखकर संकोच के मारे उस ब्राह्मण की पत्नी लज्जित हो गई | क्योकि भिक्षा देने के लिए घर में एक दाना तक नहीं था | संकल्प में उलझी वो अतिथि प्रिय, पतिव्रता स्त्री को अपनी दुर्दशा पर रोना आ गया |
और अश्रुपूर्ण आँखों को लेकर घर में से कुंछ आंवलो को लेकर आ गई |
अत्यंत संकोच से इन सूखे आंवलो को उसने उस तपस्वी को भिक्षा में दिए |
साक्षात् संकर स्वरुप उन शंकराचार्यजी को उसकी यह दीनता देखकर उस पर तरस आ गयी |
करुणासागर आचार्यपाद का हृदय करुणा से भर गया |
इंहोने तत्काल ऐश्वर्यदायी, दशविध लक्ष्मी देने वाली, अधिष्ठात्री, करुणामयी, वात्सल्यमयी, नारायण पत्नी, महालक्ष्मी को सम्बोधित करते हुए, कोमलकांत पद्यावली से एक स्तोत्र की रचना की थी और वही स्तोत्र "श्री कनकधारा स्तोत्र" के नाम से प्रसिद्ध हुआ | कनकधारा स्तोत्र की अनायास रचना से भगवती लक्ष्मी ने त्रिभुवन मोहन स्वरुप में आचार्य श्री के सम्मुख प्रकट हो गयी | तथा अत्यंत मधुरवाणी से पूछा | हे आचर्यावर अकारण ही मेरा स्मरण क्यों किया ? आचार्य शंकर ने ब्राह्मण परिवार की दरिद्र अवस्था को बताया | उसे संपन्न,सबल,एवं धनवान बनाने की प्रार्थना की | तब भगवान लक्ष्मी ने प्रत्युत्तर दिया "इस गृहस्थ के पूर्व जन्म के उपार्जित पापो के कारण इस जन्म में उसके पास लक्ष्मी होना संभव नहीं है | इसके प्रारब्ध में लक्ष्मी नहीं है |
आचार्य शंकर ने गद्गदित भाव से कहा क्या मुज जैसे याचक के इस स्तोत्र की रचना के बाद भी यह संभव नहीं है ? भगवती महालक्ष्मी अंतर्ध्यान हो गई | लेकिन इतिहास साक्षी है "इस स्तोत्र के पाठ के बाद उस दरिद्र ब्राह्मण का दुर्दैव नष्ट हो गया | कनककी वर्षा हुए अर्थात सोने की वर्षा हुई" | इसी कारण से इस स्तोत्र का नाम कनकधारा नाम पड़ा | और इसी महान स्तोत्र के तीनों काल पाठ करने से अवश्य रंक भी राजा बनता है |
|| श्री कनकधारा स्तोत्र कथा समाप्तः ||
Reviewed by Bijal Purohit
on
2:14 pm
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