श्री देव्या अथर्वशीर्षम् | Devi Atharvashirsham |

 

श्री देव्या अथर्वशीर्षम्

श्री देव्या अथर्वशीर्षम्


इस अथर्वशीर्ष का पाठ करने से पञ्च अथर्वशीर्ष का फल प्राप्त होता है |

 जो देवीभक्त इस अथर्वशीर्ष का पाठ करके देवी प्रतिमा स्थापित करता है वो सेंकडो लाख वर्ष तक जाप करके भी सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता |

इसका १०८ पाठ का पुरश्चरण है |

जो इसक १० बार पाठ करता है वो उसी क्षण सभी पापो में मुक्त हो जाता है |

सभी संकटो में से मुक्त हो जाता है |

इस के सायंकाल में किये हुए पाठ से दिन में किये हुए पापो का विनाश हो जाता है |प्रातःकाल में किये हुए पाठ से रात्रि में किये हुए पापो का विनाश हो जाता है |

देवी भक्तो को प्रतिदिन इसका एक पाठ अवश्य करना चाहिए |

सर्वे वै देवा देवीमुपतस्थुः कासि त्वं महादेवीति || ||


साब्रवीत् - अहं ब्रह्मस्वरूपिणी |

मत्तः प्रकृतिपुरुषात्मकं जगत् |

शून्यं चाशून्यं || ||


अहमानन्दानन्दौ |

अहं विज्ञानाविज्ञाने |

अहं ब्रह्मब्रह्मणी वेदितव्ये |

अहं पञ्चभूतान्यपंचभूतानि |

अहमखिलं जगत् || ||


वेदोऽहम वेदोऽहम् |

विद्याहम विद्याहम् |

अजाहमनजाहम् |

अधश्चोर्ध्वं तिर्यक्चाहम् || ||


अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्चरामि |

अहमादित्यैरुत विश्वदेवैः |

अहं मित्रावरुणावुभौ बिभर्मि |

अहमिन्द्राग्नि अहमश्विनावुभौ || ||


अहं सोमं त्वष्टारं पूषणं भगं दधामि |

अहं विष्णुमुरुक्रमं ब्रह्माणमुत प्रजापतिं दधामि || ||

 

अहं दधामि द्रविणं हविष्मते सुप्राव्ये यजमानाय सुन्वते | अहं राष्ट्री सङ्गमनी वसूनां चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम् | अहं सुवे पितरमस्य मूर्धन्मम योनिरप्स्वन्तः समुद्रे | एवं वेद |

दैवीं सम्पदमाप्नोति || ||


ते देवा अब्रुवन् - नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः |

 नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् || ||


तामग्निवर्णां तपसा ज्वलन्तीं वैरोचनीं कर्मफलेषु जुष्टाम् |

दुर्गां देवीं शरणं प्रपद्येमहेऽसुरान्नाशयित्र्यै ते नमः || ||


देवीं वाचमजनयन्त देवास्तां विश्वरूपाः पशवो वदन्ति |

सा नो मन्द्रेमूर्जं दुहाना धेनुर्वागस्मानुप सुष्टुतैतु || १० ||

 

कालरात्रीं ब्रह्मस्तुतां वैष्णवीं स्कन्दमातरम्

सरस्वतीमदितिं  दक्षदुहितरं नमामः पावनां शिवाम् || ११ ||

 

महालक्ष्म्यै विद्महे सर्वशक्त्यै धीमहि 

तन्नो देवी प्रचोदयात् || १२ ||

 

अदितिर्ह्यजनिष्ट दक्ष या दुहिता तव |

तां देवा अन्वजायन्त भद्रा अमृतबन्धवः || १३ ||


कामो योनिः कमला वज्रपाणिर्गुहा हसा मातरिश्वाभ्रमिन्द्रः |

पुनर्गुहा सकला मायया पुरुच्यैषा विश्वमातादिविध्योम् || १४ ||


एषाऽऽत्मशक्तिः | एषा विश्वमोहिनी |पाशांकुशधनुर्बाणधरा | एषा श्रीमहाविद्या | एवं वेद शोकं तरति || १५ ||

 

नमस्ते अस्तु भगवती मातरस्मान् पाहि सर्वतः || १६ ||


सैषाष्टौ वसवः | सैषैकादश रुद्राः | सैषा द्वादशादित्याः | सैषा विश्वेदेवाः सोमपा असोमपाश्च | सैषा यातुधाना असुरा रक्षांसि पिशाचा यक्षाः सिद्धाः | सैषा सत्वरजस्तमांसि | सैषा ब्रह्मविष्णुरुद्ररूपिणी | सैषा प्रजापतीन्द्रमनवः | सैषा ग्रहनक्षत्रज्योतिषिं | कलाकाष्ठादिकालरूपिणी | तामहं प्रणौमि नित्यम् |

पापापहारिणीं देवीं भुक्तिमुक्तिप्रदायिनिम्

अनन्तां विजयां शुद्धां शरण्यां शिवदां शिवाम् || १७ ||


वियदीकारसंयुक्तं वीतीहोत्रसमन्वितम्  |

 अर्धेन्दुलसितं देव्या बीजं सर्वार्थसाधकम् || १८ || 


एवमेकाक्षरं ब्रह्म यतयः शुद्धचेतसः |

ध्यायन्ति परमानन्दमया ज्ञानाम्बुराशयः || १९ || 


वाङ्गमाया ब्रह्मसूस्तस्मात् षष्ठं वक्त्रसमन्वितम्

सूर्योऽवामश्रोत्रबिंदुसंयुक्तअष्टात्तृतीयकः |

नारायणेन सम्मिश्रो वायुश्चाधरयुक्ततः |

विच्चे नवार्णकोऽर्णः स्यान्महदानन्ददायकः || २० ||

 

 हृत्पुण्डरीकमध्यस्थां प्रातःसूर्यसमप्रभाम् |

पाशांकुशधरां सौम्यां वरदाभयहस्तकाम् |

त्रिनेत्रां रक्तवसनां भक्तकामदुघां भजे || २१ ||

 

नमामि त्वां महादेवीं महाभयविनाशिनीम् |

महादुर्ग प्रशमनीं महाकारुण्यरूपिणीम् || २२ ||

 


यस्याः स्वरूपं ब्रह्मादयो जानन्ति तस्मादुच्यते अज्ञेया | यस्या अन्तो लभ्यते तस्मादुच्यते अनन्ता | यस्या लक्ष्यं नोपलक्ष्यते तस्मादुच्यते अलक्ष्या | यस्या जननं नोपलभ्यते तस्मादुच्यते अजा |

एकैक विश्वरूपिणी तस्मादुच्यते नैका

अत एवोच्यते अज्ञेयानन्तालक्ष्याजैका नैकेति || २३ ||

 

मंत्राणां मातृका देवी शब्दानां  ज्ञानरूपिणी |

ज्ञानानां चिन्मयातीता शून्यानां शून्यसाक्षिणी |

यस्याः परतरं नास्ति सैषा दुर्गा प्रकीर्तिता || २४ ||


तां दुर्गां दुर्गमां देवीं दुराचारविघातीनीम् |

नमामि भवभीतोऽहं संसारार्णवतारिणीम् || २५ ||

 

इदमथर्वशीर्षं योऽधीते  पञ्चाथर्वशीर्षजपफलमाप्नोति |

इदमथर्वशीर्षमज्ञात्वा योऽचाँ स्थापयति शतलक्षं प्रजप्त्वापि सोऽर्चासिद्धिं विन्दति |

शतमष्टोत्तरं चास्य पुरश्चर्याविधिः स्मृतः |

दशवारं पठेद यस्तु सद्यः पापैः प्रमुच्यते |

महादुर्गाणि तरति महादेव्याः प्रसादतः || २६ ||



सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति |प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति |

सायं प्रातः प्रयुञ्जानो अपापो भवति |

निशीथे तुरीयसंध्यानां जप्त्वा वाक् सिद्धिर्भवति |

नूतनायां प्रतिमायां जप्त्वा देवतासान्निध्यं भवति |

 प्राणप्रतिष्ठायां जप्त्वां प्राणानां प्रतिष्ठा भवति |

भौमाश्विन्यां महादेवी सन्निधौ जप्त्वा महामृत्युं तरति | महामृत्युं तरति एवं वेद |


|| इत्युपनिषत् ||

श्री देव्या अथर्वशीर्षम् | Devi Atharvashirsham | श्री देव्या अथर्वशीर्षम् | Devi Atharvashirsham | Reviewed by Bijal Purohit on 1:32 pm Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

Blogger द्वारा संचालित.