न्यास विधि | Nyas Vidhi |
न्यास विधि
किसी भी पूजा में न्यास करना बहुत ही महत्व है बिना न्यास कभी कोई पूजा-पाठ-मंत्र-जाप-साधना को प्राप्त नहीं कर सकता |
पूजा में न्यास करना बहुत ही आवश्यक है |
चाहे वो नित्य पूजा हो या नैमित्तिक पूजा हो |
न्यास का आध्यात्मिक रहस्य
हमारा स्थूल शरीर अपवित्रता से भरा हुआ है इसलिए यह शरीर तब तक देव पूजा का अधिकार प्राप्त नहीं कर सकता
जब तक की अन्तः और बाह्य से शुद्ध और दिव्य ना हो जाए और इसी दोष को दूर करने के लिये यह सर्वश्रेष्ठ उपाय है |
न्यास का माहात्म्य
पूजा जपार्चना: होमाः सिद्धमंत्र कृता अपि |
अंग न्यास विन्यास मधुरा न दास्यन्ति फलान्यपि ||
सिद्ध मंत्र करने के बावजूद भी पूजन-जप-अर्चन-यज्ञकर्म अंगन्यास बिना फलप्रद नहीं होते |
न्यास क्यों करने चाहिये ?
हमारे शास्त्र कहते है "न्यास हीनं तु यत्कर्म ग्रहणयान्तर्धः राक्षसाः"
न्यास बिना किया हुआ कर्म राक्षस ले जाते है |
न्यास विना जपं प्राहुरासुरं विफलं बुधाः |
न्यासा तदात्मको भूत्वा देवो भूत्वा तु तँ यजेत ||
न्यास किये बिना जाप आसुरी कहे गए है |
उसका फल कभी नहीं मिलता |
इन्ही कारणों से न्यास करकर स्वयं देवरूप होकर
देवता की पूजा करनी चाहिये |
न्यास के प्रकार
न्यास के कई प्रकार होते है जैसा कर्म,जैसा मंत्र,जैसी साधना,जैसा यज्ञ इस प्रकार से भिन्न भिन्न प्रकार के न्यास होते है |
अंगन्यास-करन्यास-षडङ्गन्यास-एकादशन्यास-मूलमंत्रन्यास-चक्रन्यास-मातृकान्यास-तत्वन्यास-देवतान्यास-मन्त्रन्यास
पीठ्न्यास-ऋष्यादिन्यास-कर न्यास-हृदयादि न्यास अन्य कई सारे न्यास के प्रकार है |
|| अस्तु ||
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