प्रदोष कथा | Pradosh Katha |

 

प्रदोष कथा 

प्रदोष कथा 


प्रदोष व्रत कथा की विधि 
प्रदोष व्रत के दिन सुबह जल्दी उठजाना चाहिए, नित्यकर्मों से निवृत होकर भगवान श्री भोलेनाथ का स्मरण करना चाहिये और व्रत करने का संकल्प ले | इस व्रत में आहार नहि लिया जा सकता है | पूरे दिन उपवास रख कर सूर्यास्त के एक घंटे पहले, स्नान आदि  करके साफ वस्त्र धारण कर लेने चाहिए | क्योंकि प्रदोष व्रत की कथा पूजन शाम के समय ही जाती है | 
पूजा के स्थल को यानि जिस जगह पर पूजा करनी है, उस जगह को गंगाजल से पवित्र ( शुद्ध ) कर देना चाहिये | और मंडप को रंगोली और फूलो से भी सजाया जा सकता है | प्रदोष व्रत की पूजा या आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग करना चाहिए, उत्तर या पूर्व दिशा की और मुख रखकर भगवान् श्री शिव शंकर की पूजा करनी चाहिये | 
पूजा में भगवान् शिव के मंत्र "ॐ नमः शिवाय " का जाप करते रहना चाहिये और अंतमे प्रदोष व्रत कथा सुनकर शिवजीकी आरती करनी चाहिये | 

प्रदोष व्रत कथा 
स्कंद पुराण के अनुसार प्रत्येक माह की दोनों पक्षों की त्रयोदशी के दिन संध्याकाल के समय को " प्रदोष " कहा जाता है और इस दिन शिवजी को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत रखा जाता है | प्रदोष व्रत की कथा निम्न है | 
स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी और पुत्र को लेकर भिक्षा मांगने जाती थी और संध्या होने पर वो वापस लोटती थी | एक दिन जब वो भिक्षा लेकर वापस लौट रहीथी तब उसने नदी के किनारे एक सुन्दर बालक को देखा, जो विदर्म देश का राजकुमार धर्मगुप्त था | शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था |
उसकी माता की भी अकाल मृत्यु हुई थी | ब्राह्मणी उस बालक को अपने साथ घर ले गई और उसका पालन-पोषण किया | 
कुछ समय के बाद ब्राह्मणी दोनों बच्चो के साथ देवयोग से देव मंदिर गई |
वहां उनका मिलाप एक ऋषि शाण्डिल्य से हुआ | ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्मदेश के राजा का पुत्र है | जो युद्ध में मारे गये थे | और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था | ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी | ऋषि शाण्डिल्य की आज्ञा से दोनों बालको ने प्रदोष व्रत करना शुरू कर दिया | 
एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे | तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याये दिखाई दी | ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंन्तु राजकुमार धर्मगुप्त  " अंशुमती " नामकी गंधर्व कन्या से बाते करने लगे |
गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए | कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार धर्मगुप्त को अपने पिता से मिलने के लिए बुलाया |
दूसरे दिन वह पुनः गंधर्व कान्यसे मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिताने बताया की वह विदर्म देश का राजकुमार है | भगवन् शिवजी की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से करवाया | 
इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्म देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त कर लिया | यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था | 
स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा के बाद एकाग्र होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता है या पढ़ता है उसे सौ जन्मो तक कभी दरिद्रता नहीं भोगतनी पड़ती | 

|| अस्तु || 
 
प्रदोष कथा | Pradosh Katha | प्रदोष कथा | Pradosh Katha | Reviewed by Bijal Purohit on 3:25 pm Rating: 5

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