कीलक स्तोत्र | Kilak Stotra in Hindi |

 

कीलक स्तोत्र 

कीलक स्तोत्र | 


ॐ चण्डिकादेवीको नमस्कार है |

मार्कण्डेयजी कहते है - विशुद्ध ज्ञान ही जिसका शरीर है, तीनों वेद ही जिनके तीन दिव्य नेत्र हैं,जो कल्याण-प्राप्तिके हेतु हैं तथा अपने मस्तक पर अर्धचन्द्रका मुकुट धारण करते हैं,उन भगवान् शिव को नमस्कार है || १ || 


मन्त्रों का जो अभिकिलक है अर्थात मन्त्रों की सिद्धि में विघ्न उपस्थित करनेवाले शापरूपी कीलकका जो निवारण करने वाला है, उस सप्तशती स्तोत्र को सम्पूर्ण रूपसे जानना चाहिये और जानकर ही उसकी उपासना करनी चाहिये, यद्यपि सप्तशती के अतिरिक्त अन्य मन्त्रों के जपमें भी जो निरन्तर लगा रहता है, वह भी कल्याणका भागी होता है || २ || 


उसके भी उच्चाटन आदि कर्म सिद्ध होते हैं तथा उसे भी समस्त दुर्लभ वस्तुओं की प्राप्ति हो जाती है, तथापि जो अन्य मन्त्रों का जप न करके केवल इस सप्तशती नामक स्तोत्र से ही देवीकी स्तुति करते हैं, उन्हें स्तुति मात्रसे ही सच्चिदानन्दस्वरूपिणी देवी सिद्ध हो जाती हैं || ३ || 


उन्हें अपने कार्यकी सिद्धि के लिये मंत्र, औषधि तथा अन्य किसी साधनके उपयोग की आवश्यकता नहीं रहती | बिना जप के ही उनके उच्चाटन आदि समस्त अभिचारिक कर्म सिद्ध हो जाते हैं || ४ ||  


इतना ही नहीं, उनकी सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुएँ भी सिद्ध होती हैं लोगोंके मन में यह शंका थी कि ' जब केवल सप्तशती की उपासनासे अथवा सप्तशती को छोड़कर अन्य मंत्रों की उपासना से भी समानरूप से सब कार्य सिद्ध होते हैं, तब इनमें श्रेष्ठ कौन-सा साधन है ?' लोगों की इस शंका को सामने रखकर भगवान् शंकर ने अपने पास आये हुए जिज्ञासुओं को समझाया कि यह सप्तशती नामक सम्पूर्ण स्तोत्र ही सर्वश्रेष्ठ एवं कल्याणमय है  ||  ५ || 


तदनन्तर भगवती चण्डिका के सप्तशती नामक स्तोत्र को महादेवजी ने गुप्त कर दिया | सप्तशती के पाठसे जो पुण्य प्राप्त होता है, उसकी कभी समाप्ति नहीं होती, किन्तु अन्य मंत्रो के जपजन्य पुण्यकी समाप्ति हो जाती है | अतः भगवान्शिवजी ने अन्य मंत्रो की अपेक्षा जो सप्तशती की ही श्रेष्ठताका निर्णय किया, उसे यथार्थ ही जानना चाहिये | ६ || 


अन्य मंत्रो का जप करनेवाला पुरुष भी यदि सप्तशती के स्तोत्र और जप का अनुष्ठान कर ले तो वह भी पूर्णरूपसे ही कल्याणका भागी होता है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है | जो साधक कृष्णपक्ष की चतुर्दशी अथवा अष्टमी को एकाग्रचित्त होकर भगवती की सेवा में अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है और फिर उसे प्रसादरूपसे ग्रहण करता है, उसीपर भगवती प्रसन्न होती हैं, अन्यथा उनकी प्रसन्नता नहीं प्राप्त होती | इस प्रकार सिद्धिके प्रतिबन्धकरूप किलके द्वारा महादेवजीने इस स्तोत्रको कीलित कर रखा है || ७-८ || 


जो पूर्वोक्त रीतिसे निष्कीलन करके इस सप्तशती स्तोत्रका प्रतिदिन स्पष्ट उच्चारणपूर्वक पाठ करता है, वह मनुष्य सिद्ध हो जाता है, वही देवी का पार्षद होता है और वही गन्धर्व भी होता है || ९ || 


सर्वत्र विचरते रहनेपर भी इस संसार में उसे कहीं भी भय नहीं होता | वह अपमृत्युके वश में नहीं पड़ता तथा देह त्यागनेके अनन्तर मोक्ष प्राप्त कर लेता है || १० || 


अतः कीलनको जानकर उसका परिहार करके ही सप्तशती का पाठ आरम्भ करे | जो ऐसा नहीं करता, उसका नाश हो जाता है | इसलिये कीलक और निष्कीलनका ज्ञान प्राप्त करनेपर ही यह स्तोत्र निर्दोष होता है और विद्वान् पुरुष इस निर्दोष स्तोत्रका ही पाठ आरम्भ करते हैं || ११ || 


स्त्रियों में जो कुछ भी सौभाग्य आदि दृष्टिगोचर होता है, वह सब देवीके प्रसाद का ही फल है | अतः इस कल्याणमय स्तोत्र का सदा जप करना चाहिये || १२ || 


इस स्तोत्र का मन्दस्वरसे पाठ करने पर स्वल्प फलकी प्राप्ति होती है और उच्चस्वरसे पाठ करने पर पूर्ण फलकी सिद्धि होती है | अतः उच्चस्वर से ही इसका पाठ आरम्भ करना चाहिये || १३ ||  

 जिनके प्रसादसे ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य, सम्पत्ति, शत्रुनाश तथा परम मोक्षकी भी सिद्धि होती है, उन कल्याणमयी जगदम्बाकी स्तुति मनुष्य क्यों नहीं करते ? || १४ || 


|| अस्तु || 

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