मकर संक्रांति की कथा | Makarsankarati ki katha |


 मकर संक्रांति की कथा 

मकर संक्रांति की कथा  


सूर्य संस्कृति में मकर संक्रांति का पर्व ब्रह्मा,विष्णु,महेश,गणेश,आद्यशक्ति और सूर्य की आराधना एवं उपासना का पवन व्रत  है,जो तन-मन-आत्मा आत्मा को  प्रदान करता है | 

संत-महर्षियों के अनुसार इसके प्रभाव से प्राणी की आत्मा शुद्ध होती है | संकल्प शक्ति बढ़ती है | ज्ञान तंतु विकसित होते हैं | मकर संक्राति इसी चेतना को विकसित करने वाला पर्व है |

यह संपूर्ण भारत वर्ष में किसी न किसी रूप में आयोजित होता है | 

विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि पितरों की शांति के लिए एवं स्व स्वास्थ्यवर्द्धन तथा सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं - तिल जल से स्नान करना, तिल दान करना, तिल से बना भोजन, जल में तिल अर्पण,तिल से आहुति, 

तिल का उबटन लगाना | 

सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से देवों की ब्रह्म मुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारंभ हो जाता है | इस कल को ही पारा-अपरा विद्या की प्राप्ति का कल कहा जाता है |

इसे साधना का सिद्धिकाल भी कहा गया है |

इस कल में देव प्रतिष्ठा, गुण निर्माण, यज्ञ कर्म आदि पुनीत कर्म किए जाते हैं |

मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व से ही व्रत उपवास में रहकर योग्य पात्रों को दान देना चाहिए | 

रामायण काल से भारतीय संस्कृति में दैनिक सूर्य पूजा का प्रचलन चला आ रहा है | राम कथा में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा नित्य सूर्य पूजा का उल्लेख मिलता है | 

राजा भगीरथ सूर्यवंशी थे, जिन्होंने भगीरथ तप साधना के परिणामस्वरूप पापनाशिनी गंगा को पृथ्वी पर लाकर अपने पूर्वजो को मोक्ष प्रदान करवाया था | राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजल, अक्षत, तिल से श्राद्ध तर्पण किया था | तब से माघ मकर संक्रांति स्नान और मकर संक्रांति श्राद्ध तर्पण की प्रथा आज तक प्रचलित है | 

कपिल मुनि के आश्रम पर जिस दिन मातु गंगे का पदार्पण हुआ था, वह मकर संक्रांति का दिन था | पावन गंगा जल के स्पर्श मात्र से राजा भगीरथ के पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी | कपिल मुनि ने वरदान देते हुए कहा था, 'मातु गंगे त्रिकाल तक जन-जन का पापहरण करेंगी और भक्तजनों की सात पीढ़ियों को मुक्ति एवं मोक्ष प्रदान करेंगी | गंगा जल का स्पर्श, पान, स्नान और दर्शन सभी पुण्यदायक फल प्रदान करेगा |' 

महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से परित्याग किया था | उनका श्राद्ध संस्कार भी सूर्य की उत्तरायण गति में हुआ था | फलतः आज तक पितरों की प्रसन्नता के लिए तिल अर्घ्य एवं जल तर्पण की प्रथा मकर संक्रांति के अवसर पर प्रचलित है | 

सूर्य की सातवीं किरण भारत वर्ष में आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देने वाली है | सातवीं किरण का प्रभाव भारत वर्ष में गंगा-जमुना के मध्य अधिक समय तक रहता है | इस भौगोलिक स्थिति के कारण ही हरिद्वार और प्रयाग में माघ मेला अर्थात मकर संक्रांति या पूर्ण कुंभ तथा अर्द्धकुंभ के विशेष उत्सव का आयोजन होता है | 


|| अस्तु ||  

 



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