गायत्री स्तोत्रम् | Gayatri Stotram |

 

गायत्री स्तोत्रम्

गायत्री स्तोत्रम् | 

भगवान् महेश्वर यानि शिवजी बोले - महामाये ! महाप्रभे ! गायत्रीदेवि ! आपकी जय हो ! महाभागे ! आपके सौभाग्य, बल और आनन्द सभी असीम है | 

दिव्य गन्ध एवं अनुलेपन आपके श्रीअंगोंकी शोभा बढ़ाते हैं | परमानन्दमहि देवि ! दिव्य मालाएँ एवं गन्ध आपके श्रीविग्रहकी छवि बढ़ाती हैं | महेश्वरि ! आप वेदोंकी माता हैं | आप ही वर्णोंकी मातृका हैं | आप तीनों लोकोंमें व्याप्त हैं | तीनों  अग्नियोंमें जो शक्ति है, वह आपका ही तेज है | त्रिशूल धारण करनेवाली देवि ! आपको मेरा नमस्कार है | देवि ! आप त्रिनेत्रा, भीमवक्त्र, भीमनेत्रा और भयानका आदि अर्थानुरूप नामोंसे व्यवहृत होती हैं | आप ही गायत्री औरसरस्वती हैं | आपके लिये हमारा नमस्कार है | अम्बिके ! आपकी आँखें कमलके समान हैं | आप महामाया हैं | आपसे अमृतकी वृष्टि होती रहती है || १ - ४ || 

सर्वगे ! आप सम्पूर्ण प्राणियोंकी अधिष्ठात्री हैं | स्वाहा और स्वधा आपकी ही प्रतिकृतियाँ हैं, अतः आपको मेरा नमस्कार है | महान् दैत्योंका दलन करनेवाली देवि ! आप सभी प्रकारसे पारीपूर्ण हैं | आपके मुखकी आभा पूर्णचन्द्राके समान है | आपके शरीर से महान् तेज छिटक रहा है | आपसे ही यह सारा विश्व प्रकट होता है | आप महाविद्या और महावेद्या हैं | आनन्दमयी देवी ! विशिष्ट बुद्धिका आपसे ही उदय होता है | आप समय अनुसार लघु एवं बृहत् शरीर भी धारण कर लेती हैं | महामाये ! आप नीति, सरस्वती, पृथ्वी एवं अक्षरस्वरूपा हैं | देवी ! आप श्री, धी तथा ॐकारस्वरूपा हैं | परमेश्वरि ! तत्त्वमें विराजमान होकर आप अखिल प्राणियों का हित करती हैं | आपको मेरा बार - बार नमस्कार हैं || ५ - ७ || 

इस प्रकार परम शक्तिशाली भगवान् शंकर ने उन देवीकी स्तुति की और देवतलोक भी बड़े उच्चस्वरसे उन परमेस्वरी की जयध्वनि करने लगे || ८ || 


|| इस प्रकार श्रीवराहमहापुराण में महेश्वरकृत गायत्रीस्तुति सम्पूर्ण हुई ||

गायत्री स्तोत्रम् | Gayatri Stotram | गायत्री स्तोत्रम् | Gayatri Stotram | Reviewed by Bijal Purohit on 4:02 pm Rating: 5

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