देवशयनी एकादशी कथा | Devshayani Ekadashi Katha |


 देवशयनी एकादशी कथा 

 देवशयनी एकादशी कथा | 

 एक बार देवऋषि नारदजी ने ब्रह्माजी से इस एकादशी के विषय में जानने की उत्सुकता प्रकट की, तब ब्रह्माजी ने उन्हें बताया - सतयुग में मान्धाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करते थे | उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी | किन्तु भविष्य में क्या हो जाए, यह कोई नहीं जानता | अतः वे भी इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनके राज्य में शीघ्र ही भयंकर अकाल पड़ने वाला है | उनके राज्य में पूरे तीन वर्ष तक वर्षा न होने के कारण भयंकर अकाल पड़ा |

 इस अकाल से चरों ओर त्राहि-त्राहि मच गई | धर्म पक्ष के यज्ञ, हवन, पिण्डदान, कथा-व्रत आदि सबमें कमी हो गई | जब मुसीबत पड़ी हो तो धार्मिक कार्यो में प्राणी की रुचि कहां रह जाती है | प्रजा ने राजा के पास जाकर अपनी वेदना की दुहाई दी | 

राजा तो इस स्थिति को लेकर पहले से ही दुःखी थे | वे सोचने लगे कि आखिर मैने ऐसा कौन-सा पाप- कर्म किया है, जिसका दण्ड मुझे इस रूप में मिल रहा है ? फिर इस कष्ट से मुक्ति पाने का कोई साधन करने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए | वहां विचरण करते-करते एक दिन के ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे और उन्हें साष्टांग प[रणाम किया | ऋषिवर ने आशीर्वचनोपरान्त कुशल क्षेम पूछा | फिर जंगल में विचरने व अपने आश्रम में आने का प्रयोजन भी जानना चाहा |   

तब राजा ने हाथ जोड़कर कहा, " महात्मन् ! सभी प्रकार से धर्म का पालन करता हुआ भी मै अपने राज्य में दुर्भिक्ष का दृश्य देख रहा हूं | आखिर किस कारण ऐसा हो रहा है,कृपया इसका समाधान करें |" 

यह सुनकर महर्षि अंगिरा ने कहा, " हे राजन ! सब युगों से उत्तम यह सतयुग है | इसमें छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दण्ड मिलता है | इसमें धर्म अपने चारों चरणों में व्याप्त रहता है | ब्राह्मण के अतिरिक्त किसी अन्य जाति को तप करने का अधिकार नहीं है जबकि आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है | यही कारण है कि आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है | जब तक वह काल को प्राप्त नहीं होगा, तब तक यह दुर्भिक्ष शांत नहीं होगा | दुर्भिक्ष की शांति उसे मारने से ही सम्भव है |"

किन्तु राजा का हृदय एक निरपराध शूद्र तपस्वी का शमन करने को तैयार नहीं हुआ | उन्होंने कहा, " हे देव ! मैं उस निरपराध को मार दूं, यह बात मेरा मन स्वीकार नहीं कर रहा है | कृपा करके आप कोई और उपाय बताएं |" 

महर्षि अंगिरा ने बताया, " आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करें | इस व्रत के प्रभाव से अवश्य ही वर्षा होगी |" 

राजा अपने राज्य की राजधानी लौट आए और चारों वर्णो सहित पद्मा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया | व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलाधार वर्षा हुई और पूरा राज्य धन - धान्य से परिपूर्ण हो गया | 


|| अस्तु ||  

देवशयनी एकादशी कथा | Devshayani Ekadashi Katha |  देवशयनी एकादशी कथा | Devshayani  Ekadashi Katha | Reviewed by Bijal Purohit on 4:12 pm Rating: 5

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