नर्मदा शिवलिंग का महत्व | Narmadeshwar shivling mahatva |

 


नर्मदा शिवलिंग का महत्व

नर्मदा शिवलिंग का महत्व 


एक समय की बात है 

जब भगवान् शिव यमुनामें स्नान करके यमुना के किनारे मनोहर रूप धारण करके हाथमें वाद्य ले लिया और ललाटमें त्रिपुण्ड्र धारण करके शिखरपर जटा बढ़ाये मुनियोंके घरोंमें स्वेच्छानुसार घूम - घूमकर अङ्गोंकी चपल चेष्टाका प्रदर्शन पारम्भ किया | वे कहीं गीत गाते और कहीं अपनी मौजसे नाचने लगते थे | 

स्त्रियोंके बीचमें जाकर कभी क्रोध करते और कभी हॅंसने लगते थे| |  

इस प्रकार उन्हें सब ओर घूमते देखकर मुनीलोगोंने क्रोध किया और यह शाप दिया कि " तुम लिङ्गरूप हो जाओ " | 

शाप होनेपर भगवान् शिव अन्यत्र बहुत दूर चले गये | 

उनका वह लिङ्गरूप अमरकण्टक पर्वतके रूपमें अभिव्यक्त हुआ और वहाँसे नर्मदा नामक नदी प्रकट हुई |

 नर्मदामें नहाकर, उसका जल पीकर तथा उसके जलसे पितरोंका तर्पण करके मनुष्य इस पृथ्वीपर दुर्लभ कामनाओंको भी प्राप्त कर लेता है | 

जो मनुष्य नर्मदामें स्थिर शिवलिङ्गो का पूजन करेंगे, 

वे शिवस्वरूप हो जायँगे | 

विशेषतः चातुर्मास्यमें शिवलिङ्गकी पूजा महान् फल देनेवाली है | 

चातुर्मास्यमें रुद्रमन्त्रका जप, शिवकी पूजा और शिवमें अनुराग विशेष फलद है |

 जो पञ्चामृतसे भगवान् शिवको स्नान कराते हैं, 

उन्हें गर्भकी वेदना नहीं सहन करनी पड़ती | 

जो शिवलिङ्गके मस्तकपर मधुसे अभिषेक करेंगे, 

उनके सहस्त्रों  ( सभी ) दुःख तत्काल नष्ट हो जायेंगे |

 जो चातुर्मास्यमें शिवजी आगे दीपदान करते हैं, 

वे शिवलोकके भागी होते हैं |

 जो जलधारासे युक्त नर्मदेश्वर महालिङ्गका

 चातुर्मास्यमेंविधि पूर्वक पूजन करता है, वह शिवस्वरूप हो जाता है | 


|| अस्तु || 

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