संस्कृत सुभाषित हिंदी अर्थ सहित | पिण्डे पिण्डे मतिर्भिन्ना | Sanskrit Subhashit |
पिण्डे पिण्डे मतिर्भिन्ना
|| सुभाषित ||
पिण्डे पिण्डे मतिर्भिन्ना कुण्डे कुण्डे नवं पयः |
जातौ जातौ नवचाराः नवावाणी मुखे मुखे ||
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संस्कृत सुभाषित |
|| अर्थ ||
दुनिया में हर एक मनुष्य की मति यानी बुद्धि और विचारधारा अलग अलग होती है
हर एक कुण्डे में पानी भी अलग अलग होता है अर्थात
( हर एक तालाब में अलग अलग प्रकार का पानी होता है )
हर एक वर्ण की अलग अलग अपनी जीने की राह होती है
इसलिए ऋषिमुनियों ने कहा है
"जितने मुँह उतनी बाते"
|| जय श्री कृष्ण ||
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Reviewed by Bijal Purohit
on
6:27 am
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waah kya baat kahi hai rishyon ne waah
जवाब देंहटाएंGreat
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