श्री गायत्री स्तोत्रम् | Shree Gayatri Stotram |

 श्री गायत्री स्तोत्रम्

 श्री गायत्री स्तोत्रम्



|| श्री नारायण उवाच ||


आदिशक्ते जगन्मातर्भक्तानुग्रहकारिणि |

सर्वत्र व्यापिकेऽनन्ते श्रीसंध्ये ते नमोऽस्तु || ||


त्वमेव संध्या गायत्री सावित्री सरस्वती |

ब्राह्मी वैष्णवी रौद्री रक्ता श्वेता सितेतरा || ||


प्रातर्बाला मध्याह्ने यौवनस्था भवेत् पुनः |

ब्रह्मा सायं भगवती चिन्त्यते मुनिभिः सदा || ||


हंसस्था गरुडारुढा तथा वृषभवाहिनी |

ऋग्वेदध्यायिनी भूमौ ६श्यते या तपस्विभिः || ||


यजुर्वेदं पठंती अन्तरिक्षे विराजते |

सा साममपि सर्वेषु भ्राम्यमाणा तथा भुवि || ||


रुद्रलोकं  गता त्वं हि विष्णुलोकनिवासिनी |

त्वमेव ब्रह्मणो लोकेऽमर्त्यानुग्रहकारिणी || ||


सप्तर्षिप्रीतिजननी माया बहुवरप्रदा |

शिवयोः करनेत्रोत्था ह्यश्रुस्वेदसमुद्भवा || ||


आनन्दजननी दुर्गा दशधा परिपठ्यते |

वरेण्या वरदा चैव वरिष्ठा वरवर्णिनी || ||


गरिष्ठा वरार्हा वरारोहा सप्तमी |

नीलगङ्गा तथा संध्या सर्वदा भोगमोक्षदा || ||


भागीरथी मर्त्यलोके पाताले भोगवत्यपि |

त्रिलोकवाहिनी देवी स्थानत्रयनिवासिनी || १० ||


भूर्लोकस्था त्वमेवासि धरित्री लोकधारिणी |

भुवो लोके वायुशक्तिः स्वर्लोके तेजसां निधिः || ११ ||


महर्लोके महासिद्धिर्जनलोके जनेत्यपि |

तपस्विनी तपोलोके सत्यलोके तु सत्यवाक् || १२ ||


कमला विष्णुलोके गायत्री ब्रह्मलोकदा |

रुद्रलोके स्थिता गौरी हरर्धङ्गनिवासिनी || १३ ||


अहमो महतश्चैव प्रकृतिस्त्वं हि गीयसे |

साम्यावस्थात्मिका त्वं हि शबलब्रह्मरूपिणी || १४ ||


ततः परा पराशक्तिः परमा त्वं हि गीयसे |

इच्छाशक्तिः क्रियाशक्तिर्ज्ञानशक्तिस्त्रिशक्तिता || १५ ||


गंगा यमुना चैव विपाशा सरस्वती |

सरयूर्देविका सिन्धुर्नर्मदैरावती तथा || १६ ||


गोदावरी शतद्रुश्च कावेरी देवलोकगा |

कौशिकी चन्द्रभागा वितस्ता सरस्वती || १७ ||


गण्डकी तापिनी तोया गोमती वेत्रवत्यपि |

इडा पिंगला चैव सुषुम्ना तृतीयका || १८ ||


गांधारी हस्तिजिह्वा पूषाऽपूषा तथैव |

अलम्बुषा कुहूश्चैव शंखिनी प्रणवाहिनी || १९ ||


नाडी  त्वं शरीरस्था गीयसे प्राक्तनैर्बुधैः |

हृत्पद्मस्था प्राणशक्तिः कण्ठस्था स्वप्ननायिका || २० ||


तालुस्था त्वं सदाधारा बिंदुस्था बिंदुमालिनी |

मूले तु कुण्डलीशक्तिर्व्यापिनी केशमूलगा || २१ ||


शिखामध्यासना त्वं हि शिखाग्रे तु मनोन्मनी |

किमन्यद् बहुनोक्तेन यत्किंचिज्जगतीत्रये || २२ ||


तत्सर्व त्वं महादेवि श्रिये संध्ये नमोस्तु ते |

इतीदं कीर्तितं स्तोत्रं संध्यायां बहुपुण्यदम् || २३ ||


महापापप्रशमनं महासिद्धिविधायकम् |

इदं कीर्तयेत्स्तोत्रं संध्याकाले समाहितः || २४ ||


अपुत्रः प्राप्नुयात् पुत्रं धनार्थी धनमाप्नुयात् |

सर्वतीर्थतपोदानयज्ञयोगफलं लभेत् || २५ ||


भोगान्भुक्त्वा चिरं कालमन्ते मोक्षमवाप्नुयात् |

तपस्विभिः कृतं स्तोत्रं स्नानकाले तु यः पठेत् || २६ ||


यत्र कुत्र जले मग्नः संध्यामज्जनजं फलम् |

लभते नात्र संदेहः सत्यं सत्यं नारदे || २७ ||


शृणुयाद् योऽपि तद्भक्त्या तु पापात्प्रमुच्यते |

पियूषसद्दशं वाक्यं संप्रोक्त्तं नारदेरितम् || २८ ||


|| इति श्री गायत्री स्तोत्रम् सम्पुर्णम् ||

श्री गायत्री स्तोत्रम् | Shree Gayatri Stotram |  श्री गायत्री स्तोत्रम् | Shree Gayatri Stotram | Reviewed by Bijal Purohit on 4:08 am Rating: 5

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