आठ महादान | Aath Mahadan |

 

आठ महादान

आठ महादान



आतुरे चोपरागे  द्वयं दानं विशिष्यते |

अतोऽवश्यं प्रदातव्यमष्टदानं तिलादिकम् ||


तिला लोहं हिरण्यं  कार्पासो लवणं तथा |

सप्तधान्यं क्षितिर्गावो ह्येकैकं पावनं स्मृतम् ||


आतुरकालचंद्रग्रहणसूर्यग्रहण को सात्त्विक दान देना अधिक पुण्यप्रद  है,इसलिए तिलादि अष्टमहादान अवश्य देवे |


तिललोहासोनारुईलवणसप्तधान्यभूमिगौयह एक - एक दान भी सबको पवित्र करने वाला है | यदि अष्टदान को एक दिन में करे तो सर्वोत्तम है |


एतदष्टमहादानं महापातकनाशनम् |

 अन्तकाले प्रदातव्यं शृणु तस्य  सत्फलम् ||


मम स्वेदसमुद्भूताः पवित्रास्त्रिविधास्थिलाः |

असुरा दानवा दैत्यास्तृप्यन्तिलदानतः ||


यह अष्टमहादान महापातकबड़े पाप का नाश करने वाला  है,इसको अंत समय में अवश्य देवेउसका फल तुमकोकहता हूँ सुनो |


श्री भगवान् बोलेमेरे उत्पन्न हुए तीन तरह के तिल हैंवे बड़े पवित्रतम हैं,उनके दान देने से सब असुरदैत्यदानव,तृप्तहो जाते हैं |



|| अस्तु ||

आठ महादान | Aath Mahadan | आठ महादान | Aath Mahadan | Reviewed by Bijal Purohit on 2:20 am Rating: 5

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