श्रीस्तोत्रम | Shri Stotram Hindi |


श्रीस्तोत्रम

श्रीस्तोत्रम | Shri Stotram Hindi |
श्रीस्तोत्रम 

लक्ष्मीस्तोत्र पाठ और फल

पुष्करजी ने कहा कि -हे भगवान परशुरामजी !
 प्राचीन काल में इन्द्र ने राज्यलक्ष्मी की स्थिरता के लिये जिस तरह भगवती लक्ष्मी की स्तुति की थी, उसी तरह राजा को भी  अपनी विजय के लिये उनका स्तवन करना चाहिये || १ ||

इन्द्र बोले - जो सम्पूर्ण लोको की जननी हैं, समुद्र से जिनका आविर्भाव हुआ है,
जिनके नेत्र खिले हुए कमल के समान शोभायमान हैं
 तथा जो भगवान श्रीहरि विष्णु के वक्षःस्थल में विराजमान हैं, 
उन लक्ष्मीदेवी को मैं नमस्कार करने जा रहा हूँ |

जगत को पवित्र करने वाली देवी ! 
तुम्हीं सिद्धि हो और तुम्हीं स्वधा, स्वाहा, सुधा, संध्या, रात्रि, प्रभा, भूति, मेधा, श्रद्धा और सरस्वती हो | 
शोभामयी देवी ! तुम्हीं यज्ञविद्या, महाविधा, गृह्यविद्या तथा मोक्षरूप फल सम्प्रदान करने वाली आत्मविद्या तथा मोक्ष रूप फल सम्प्रदान करने वाली आत्मविद्या हो | 

आन्वीक्षिकी    ( दर्शनशास्त्र ), त्रयी ( ऋक, साम, यजु ), वार्ता ( जीविका-प्रधान कृषि, गौरक्षा और वाणिज्य कर्म ) तथा दण्डनीति भी तुम्हीं हो | हे देवि | आप स्वयं सौम्यस्वरूप वाली ( सुन्दरी ) हो; इसलिए आपसे व्याप्त होने के कारण इस जगत का रूप भी सौम्य - मनोहर दिखायी देता है |
 भगवती ! तुम्हारे सिवा दूसरी कौन स्त्री है, जो कौमोद की गदा धारण करने वाली देवाधिदेव भगवान श्रीहरि विष्णु के अखिल यज्ञमय विग्रह को, जिसका योगिलोग चिन्तन करते हैं, 

अपना निवासस्थान बना सके | 
हे देवि ! तुम्हारे त्याग देने से समस्त त्रिलोकी नष्टप्राय हो गयी थी; 
परन्तु इस समय पुनः आपका ही सहारा पाकर यह समृद्धिपूर्ण दिखायी देती है | 

हे महाभागे ! आपकी कृपादृष्टि  से ही मनुष्यों को सदा स्त्री, पुत्र, गृह, मित्र और धन-धान्य आदि की प्राप्ति हो जाती है | हे देवि ! जिन पुरुषों पर आपकी दयादृष्टि पड़ जाती है, उनको शरीर की निरोगता, ऐश्वर्य, शत्रुपक्ष की हानि और सभी तरह के सुख-कुछ भी दुर्लभ नहीं हैं 

 हे मातः ! आप सम्पूर्ण भूतों की जननी और देवाधिदेव विष्णु सबके पिता हैं | आपने और भगवान श्रीहरि विष्णु ने इस चराचर जगत को व्याप्त कर रखा है |
सभी को पवित्र करने वाली देवि | आप मेरी मान-प्रतिष्ठा, खजाना, अन्न - भण्डार, गृह, साज - सामान, शरीर और स्त्री - किसी का भी त्याग न करो |

 भगवान श्रीहरि विष्णु के वक्षःस्थल में वास करने वाली लक्ष्मी ! मेरे पुत्र, मित्रवर्ग, पशु तथा आभूषणों को भी न त्यागो | विमलस्वरूपा देवि ! जिन मनुष्यों को आप त्याग देती हो, उनको सत्य, समता, शौच तथा शील आदि सद्गुण भी तत्काल ही छोड़ देते हैं | आपकी कृपादृष्टि पड़ने पर गुणहीन मनुष्य भी तुरन्त ही शील आदि सम्पूर्ण श्रेष्टतम गुणों तथा पीढ़ियों तक बने रहने वाले ऐश्वर्य से युक्त हो जाते हैं | 

हे देवि ! जिसको आपने अपनी दयादृष्टि से एक बार देख लिया, वही श्लाध्य ( प्रशंसनीय ), गुणवान धन्यवाद का पात्र,कुलीन, बुद्धिमान, शूर  और पराक्रमी हो जाता है | के विष्णुप्रिये ! आप जगत की माता हो | जिसकी तरफ से आप मुँह फेर लेती हो, उसके शील आदि सभी गुण तत्काल दुर्गुण के रूप में बदल जाते हैं | कमल के समान नेत्रों वाली देवि ! ब्रह्माजी की जिह्मा भी तुम्हारे गुणों का वर्णन करने में सक्षम नहीं हो सकती |
मुझपर प्रसन्न हो जाओ तथा कभी भी मेरा परित्याग न करो || २ ||

पुष्करजी ने कहा कि - इन्द्र के इस तरह स्तवन करने पर भगवती लक्ष्मी ने उनको राज्य की स्थिरता और संग्राम में विजय आदि का अभीष्ट वरदान दिया | साथ ही अपने स्तोत्र का पाठ या श्रवण करने वाले पुरुषों के लिए भी उन्होंने भोग तथा मोक्ष मिलने के लिये वर सम्प्रदाय किया |
इसलिये मनुष्य को सदा ही लक्ष्मी के इस स्तोत्र का पाठ
और श्रवण  करना चाहिये || 

|| अस्तु ||
श्रीस्तोत्रम | Shri Stotram Hindi | श्रीस्तोत्रम | Shri Stotram Hindi | Reviewed by Bijal Purohit on 12:37 pm Rating: 5

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