श्री गणेश संकट चौथ व्रत कथा | Sankat Chauth Katha |


श्री गणेश संकट चौथ व्रत कथा 

श्री गणेश संकट चौथ व्रत कथा 

श्री गणेश चतुर्थी के दिन श्री विध्नहर्ता की पूजा, अर्चना और व्रत करने से व्यक्त्ति के समस्त संकट दूर होते है |
माघ माह के कृष्ण पक्ष चतुर्थी के दिन को संकट चौथ के नाम से भी जाना जाता है |
इस तिथि समय रात्री को चंद्र उदय होने के पश्च्यात चंद्र उदित होने के बाद भोजन करे तो अति उत्तम रहता है |
तथा रात में चंद्र को अर्घ्य देते है | 

हिन्दू धर्म शास्रों के अनुसार भगवान श्री गणेश कई रुपों में अवतार लेकर प्राणीजनों के दुखों को दूर करते हैं | श्री गणेश मंगलमूर्ति है,
सभी देवों में सबसे पहले श्री गणेश का पूजन किया जाता है |
श्री गणेश क्योकि शुभता के प्रतिक है |
पंचतत्वों में श्री गणेश को जल का स्थान दिया गया है |
बिना गणेश का पूजन किए बिना कोई भी इच्छा पूरी नहीं होती है |
विनायक भगवान का ही एक नाम अष्टविनायक भी है |

इनका पूजन व दर्शन का विशेष महत्व है |
इनके अस्त्रों में अंकुश एवं पाश है, चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतिक उनकी चार भुजाएँ हैं, उनका लंबोदर रुप "समस्त सृष्टि उनके उदर में विचरती है" का भाव है बड़े-बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति का तथा आँखें सूक्ष्म तीक्ष्ण दॄष्टि की सूचक हैं, उनकी लंबी सूंड महबुद्धित्व का प्रतीक है |

गणेश संकट चौथ व्रत का महत्व |  
श्री गणेश चतुर्थी का उपवास जो भी भक्त संपूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ करता है, उनकी बुद्धि और ऋषि-सिद्धि की प्राप्ति होने के साथ-साथ जीवन में आनेवाली विघ्न बाधाओं का भी नाश होता है. सभी तिथियों में चतुर्थी तिथि श्री गणेश को सबसे अधिक प्रिय होती है |

श्री गणेश संकट चतुर्थी पूजन | 
संतान की कुशलता की कामना व लंबी आयु हेतु भगवान गणेश और माता पार्वती की विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए, व्रत का आरंभ तारों की छाव में करना चाहिए व्रतधारी को पूरा दिन अन्न, जल ग्रहण किए बिना मंदिरों में पूजा अर्चना करनी चाहिए और बच्चों की दीर्धायु के लिए कामना करनी चाहिए, इसके बाद संध्या समय पूजा की तैयारी के लिए गुड़, तिल, गन्ने और मूली का उपयोग करना चाहिए.व्रत में यह सामग्री विशेष महत्व रखती है, देर शाम चंद्रोदय के समय व्रतधारी को तिल, गुड़ आदि का अर्घ्य देकर भगवान चंद्र देव से व्रत की सफलता की कामना करनी चाहिए |

माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का व्रत लोक प्रचलित भाषा में इसे संकट चौथ कहा जाता है |
इस दिन संकट हरण गणेशजी तथा चंद्रमा का पूजन किया जाता है, यह व्रत संकटों तथा दुखों को दूर करने वाला तथा सभी इच्छाएं व मनोकामनाएं पूरी करने वाला है |
इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत करती हैं गणेशजी की पूजा की जाती है और कथा सुनने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है | 

श्री गणेश संकट चौथ व्रत कथा 
एक समय की बात है कि विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्मीजी के साथ निश्चित हो गया | विवाह की तैयारी होने लगी | सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परंतु गणेशजी को निमंत्रण नहीं दिया, कारण जो भी रहा हो | 

अब भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया | सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में आए | उन सबने देखा कि गणेशजी कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं | तब वे आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेशजी को नहीं न्योता है? या स्वयं गणेशजी ही नहीं आए हैं? सभी को इस बात पर आश्चर्य होने लगा | तभी सबने विचार किया कि विष्णु भगवान से ही इसका कारण पूछा जाए | 
विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेशजी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है | यदि गणेशजी गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं | दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल,सवा मन घी और सवा मन लाडू का भोजन दिनभर में चाहिए |
यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं | दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता | इतनी वार्ता कर ही रहे थे कि किसी एक ने सुझाव दिया- यदि गणेशजी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर की याद रखना | आप तो चूहे पर बैठकर घिरे - घिरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे | यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी | होना क्या था कि इतने में गणेशजी वहां आ पहुंचे और उन्हें समझा - बुझाकर घर की रखवाली करने बैठा दिया |
बारात चल दी, तब नारदजी ने देखा कि गणेशजी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेशजी के पास गए और रुकने का कारण पूछा |
गणेशजी कहने लगे कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है | नारदजी ने मेरा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके वाहन घरती में घंस जाएंगे, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा |
अब तो गणेशजी ने अपनी मूषक सेना जल्दी से आगे भेज दी और सेना ने जमीन पोली कर दी |
जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में घंस गए | लाख कोशिश करें,परंतु पहिए तो नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से टूट गए | किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए | तब तो नारदजी ने कहा-आप लोगों ने गणेशजी का अपमान करके अच्छा नहीं किया | यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है | शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेशजी को लेकर आए |
गणेशजी का आदर - सम्मान के साथ पूजन किया, तब रथ के पहिए निकले | अब रथ के पहिए निकल तो गए, परंतु वे टूट-फूट गए, तो उन्हें सुधारे कौन ? पास के खेत में खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया | खाती अपना कार्य करने के पहले "श्री गणेशाय नमः" कहकर गणेशजी की वंदना मन ही मन करने लगा | देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया |

तब खाती कहने लगा की हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजन की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है | हम तो मूरख अज्ञानी हैं,फिर भी पहले गणेशजी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं | आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेशजी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेशजी की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा |

ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और विष्णु भगवान का लक्ष्मीजी के साथ विवाह संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए |
हे गणेशजी महाराज! आपने विष्णु को जैसो कारज सरियो, एसो कारज सबको सिद्ध करजो | बोलो गजानन भगवान की जय |

|| श्री गणेश संकट चौथ व्रत कथा समाप्तः ||
श्री गणेश संकट चौथ व्रत कथा | Sankat Chauth Katha | श्री गणेश संकट चौथ व्रत कथा | Sankat Chauth Katha | Reviewed by Bijal Purohit on 3:30 am Rating: 5

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