माँ कुष्मांडा की कथा | Kushmanda Maa Katha |


माँ कुष्मांडा की कथा 

माँ कुष्मांडा की कथा | Kushmanda Maa Katha |
माँ कुष्मांडा की कथा 

कुष्मांडा कथा 

"कूष्माण्डेति चतुर्थकं" अनुसार नवरात्री के चतुर्थ दिन माँ दुर्गा के चौथे स्वरुप कुष्मांडा माँ का पूजन का विधान है |
आइये जानते है माँ कुष्मांडा की कथा के बारे में विस्तृत और संक्षिप्त कथा |

माँ कुष्मांडा कथा 

शास्त्रोक्त उल्लेख है की जब सृष्टि का अस्तित्व भी नहीं था तब चारो तरफ सिर्फ अंधकार ही था,
उस समय माँ कुष्मांडा ने अपने मंद हास्य से सृष्टि की उत्पत्ति की थी | कुष्मांडा माँ के पास इतनी शक्ति है की वो सूरज के घेरे में भी रह सकती है,
क्योकि उनके पास ऐसी शक्ति है जो असह्य गरमी को भी सहन करती है |
इसलिए माँ कुष्मांडा की पूजा से जीवन में सभी प्रकार की शक्ति और ऊर्जा प्राप्त होती है |

माँ कुष्मांडा का स्वरुप 

माँ कुष्मांडा अष्टभुजावाली है, माँ सिंह पर सवारी करती है, माँ कुष्मांडा के मस्तक पर रत्नजड़ित मुकुट सुशोभित है, जिसके कारण उनका स्वरुप अत्यंत उज्जवल लगता है, माँ कुष्मांडा के हाथो में क्रमशः कमंडल, माला, धनुष, बाण, कमल, चक्र और गदा धारण किया हुआ है |

|| माँ कुष्मांडा कथा समाप्तः ||  




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