करवा चौथ व्रत की कथा | Karvachauth Vrat Katha |


करवा चौथ व्रत की कथा 


करवा चौथ व्रत की कथा | Karvachauth Vrat Katha |
करवाचौथ व्रत कथा 

करवा चौथ के दिन व्रत कथा पढ़ना अनिवार्य माना गया है |
करवा चौथ की कई कथाएं है लेकिन सबका मूल एक ही है |
करवा चौथ की प्रचलित कथा निम्न है | 

प्रथम कथा 

महिलाओं के अखंड सौभाग्य का प्रतीक करवा चौथ व्रत की कथा कुछ इस प्रकार है- एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी | 

एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उनके सातों बहुएं और उसकी बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा |
रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने को कहा |
इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है | चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही मैं आज भोजन करूंगी | 

साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुख हुआ |
साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और
वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी |
घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है | अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो |
साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा-देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो |
ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा-बहन अभी चांद नहीं निकला है,
तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को
चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं |

साहूकार की बेटी अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया |
इस प्रकार करवा चौथ का व्रत भंग करने के कारण विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में लग गया |

साहूकार की बेटी को जब अपने किये हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ |
उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया |
उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आशीर्वाद  ग्रहण किया |

इस प्रकार उस लड़की के श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत भगवान गणेश जी उसपर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया |
उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन,संपत्ति और वैभव से युक्त्त कर दिया |

कहते हैं इस प्रकार यदि कोई मनुष्य छल- कपट,अहंकार,लोभ,लालच को त्याग कर श्रद्धा और भक्तिभाव पूर्वक चतुर्थी के व्रत को पूर्ण करता है,
तो वह जीवन में सभी प्रकार के दुखों और क्लेशों से मुक्त होता है और सुखमय जीवन व्यतीत करता है |

व्रत की पौराणिक कथा 

यह व्रत कार्तिक मास की चतुर्थी को मनाया जाता है, इसलिए इसे करवा चौथ कहते हैं | व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक द्विज नामक ब्राह्मण के सात बेटे व वीरावती नाम की कन्या थी |

वीरावती ने पहली बार मायके में करवा चौथ का व्रत रखा | निर्जला व्रत होने के कारण वीरावती भूख के मारे परेशान हो रही थी तो उसके भाइयों से रहा न गया | उन्होंने नगर के बाहर वट के वृक्ष पर एक लालटेन जला दी व अपनी बहन को चंदा मामा को अर्घ्य देने के लिए कहा | 


वीरावती जैसे ही अर्घ्य देकर भोजन करने के लिए बैठी तो पहले कौर में बाल निकला,दूसरे कौर में छींक आई |
वहीं तीसरे कौर में ससुराल से बुलावा आ गया | वीरवती जैसे ही ससुराल पहुँची तो वहाँ पर उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी |
पति को देखकर वीरवती विलाप करने लगी |
तभी इंद्राणी आई और वीरवती को बारह माह की चौथ व करवा चौथ का व्रत करने को कहा | 

वीरवती ने पूर्ण श्रद्धाभक्ति से बारह माह की चौथ व करवा चौथ का व्रत रखा, जिसके प्रताप से उसके पति को पुनः जीवन मिल गया |
अतः पति की दीर्घायुके लिए ही महिलाएं पुरातनकाल से करवा चौथ का व्रत करती चली आ रही हैं | 

|| अस्तु || 



करवा चौथ व्रत की कथा | Karvachauth Vrat Katha | करवा चौथ व्रत की कथा | Karvachauth Vrat Katha | Reviewed by Bijal Purohit on 8:36 am Rating: 5

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