बुधवार व्रतकथा | Budhwar Vrat Katha |
बुधवार व्रतकथा
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बुधवार व्रतकथा |
एक समय किसी नगर में एक बहुत ही धनवान साहुकार रहता था. साहूकार का विवाह नगर की सुन्दर और गुणवंती लड़की से हुआ था |
एक बार वो अपनी पत्नी को लेने बुधवार के दिन ससुराल गया और पत्नी के माता-पिता से विदा कराने के लिए कहा |
माता-पिता बोले-बेटा आज बुधवार है |
बुधवार को किसी भी शुभ कार्य के लिए यात्रा नहीं करते। लेकिन वह नहीं माना और उसने वहम की बातों को न मानने की बात कही |
दोनों ने बैलगाड़ी से यात्रा प्रारंभ की |
दो कोस की यात्रा के बाद उसकी गाड़ी का एक पहिया टूट गया.वहां से दिनों ने पैदल ही यात्रा शुरू की |
रस्ते में पत्नी को प्यास लगी तो साहुकार उसे एक पेड़ के निचे बैठाकर जल लेने के लिए चला गया.थोड़ी देर बाद जब वो कही से जल लेकर वापस आया तो वह बुरी तरह हैरान हो उठा, क्योंकि उसकी पत्नी के पास उसकी ही शक्ल-सूरत का एक दूसरा व्यक्ति बैठा था |
पत्नी भी साहुकार को देखकर हैरान रह गई |
वह दोनों में कोई अंतर नहीं कर पाई. साहुकार ने उस व्यक्ति से पूछा-तुम कौन हो और मेरी पत्नी के पास क्यों बैठे हो |
साहुकार की बात सुनकर उस व्यक्ति ने कहा-अरे भाई, यह मेरी पत्नी है |
मैं अपनी पत्नी को ससुराल से विदा करा कर लाया हूं, लेकिन तुम कौन हो जो मुझसे ऐसा प्रश्न कर रहे हो ?
साहुकार ने लगभग चीखते हुए कहा-तुम जरुर कोई चोर या ठग हो |
यह मेरी पत्नी है | मैं इसे पेड़ के निचे बैठाकर जल लेने गया था |
इस पर उस व्यक्ति ने कहा-अरे भाई, झूठ तो तुम बोल रहे हो |
पत्नी को प्यास लगने पर जल लेने तो मैं गया था |
मैं तो जल ला कर अपनी पत्नी को पीला भी दिया है |
अब तुम चुपचाप यहां से चलते बनो नहीं तो किसी सिपाही को बुलाकर तुम्हे पकड़वा दूंगा,
दोनों एक-दूसरे से लड़ने लगे. उन्हें लड़ते देख बहुत से लोग वहां एकत्र हो गए. नगर के कुछ सिपाही भी वहां आ गए |
सिपाही उन दोनों को पकड़कर राजा के पास ले गए |
सारी कहानी सुनकर राजा भी कोई निर्णय नहीं कर पाया, पत्नी भी उन दोनों में से अपने वास्तविक पति को नहीं पहचान पा रही थी |
राजा ने उन दोनों के कारागार में डाल देने को कहा |
राजा के फैसले को सुनकर असली साहुकार भयभीत हो उठा |
तभी आकाशवाणी हुई-साहुकार तूने माता-पिता की बात नहीं मानी और बुधवार के दिन अपनी ससुराल से प्रस्थान किया।
यह सब भगवान बुधदेव के प्रकोप से हो रहा है |
साहुकार ने भगवान बुधदेव से प्रार्थना की कि हे भगवान बुधदेव मुझे क्षमा कर दीजिए, मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई |
भविष्य में अब कभी बुदवार के दिन यात्रा नहीं करूंगा और सदैव बुधवार को आपका व्रत किया करूंगा, साहुकार की प्राथना से प्रसन्न होकर भगवान बुधदेव ने उसे क्षमा कर दिया, तभी दूसरा व्यक्ति राजा के सामने से गायब हो गया |
राजा और दूसरे लोग इस चमत्कार को देखकर हैरान हो गए |
भगवान बुधदेव की अनुकम्पा से राजा ने साहुकार और उसकी पत्नी को सम्मानपूर्वक विदा किया,
कुछ दूर चलने पर रस्ते में उन्हें बैलगाड़ी मिल गई |
बैलगाड़ी का टूटा हुआ पहिया भी जुड़ा हुआ था |
दोनों उसमें बैठकर नगर के ओर चल दिए |
साहुकार और उसकी पत्नी दोनों बुधवार का व्रत करते हुए आनंदपूर्वक जीवन-यापन करने लगे |
भगवान बुधदेव की अनुकम्पा से उनके घर में धन-सम्पत्ति की वर्षा होने लगी |
जल्द ही उनके जीवन में खुशियां ही खुशियां भर गई |
भड़वार का व्रत करने से स्त्री-पुरुष के जीवन में सभी मंगलकामनाएं पूरी होती है |
|| बुधवार व्रत कथा समाप्तः ||
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Reviewed by Bijal Purohit
on
2:00 pm
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