गणपति अथर्वशीर्ष | Ganpati Atharvashirsha |

 

गणपति अथर्वशीर्ष

गणपति अथर्वशीर्ष 



श्री गणेशजी को नमस्कार है | 
आप ही साक्षात् हैं | 
आप ही कर्ता हो | आप ही दूसरों का दुःख हरने वाले हो और 
आप ही ब्रह्म हो | 
सब रुपों में आपका ही रुप है | सब रुपों में आप ही दिखाई देते हो | 
आप सबमें व्याप्त हो |
 आप ही आत्मा  स्वरुप हो || १ || 

ऋतु जो कहता है वह न्यायिक एवं सत्य है || २ || 

आप हमारी रक्षा करें | 
बोलने वाले की रक्षा करें | सुनने वाले की रक्षा करें | 
पालन करने वाले की रक्षा करें | शिष्यों की रक्षा करें तथा उनका भला करें | 
चारों दिशाओं से हमारी रक्षा करें || ३ || 

शब्द और स्वर दोनों ही आप हैं | 
आप ही भला करने वाले तथा आनंदमयी हैं | 
आप ईश्वर हैं | आप सत् चित् आनन्द स्वरुप हैं | 
आप दया के सागर हैं | आप ही ज्ञान एवं विज्ञानमय हैं || ४ || 

आप से सारा संसार उत्पन्न होता हैं | 
आपमें ही यह स्थित होता है और आप में ही समा जाता है | 
आप ही पाँचों तत्त्व हो | 
चार प्रकार की सृष्टि में भी  आप ही विराजमान हो || ५ || 

आप लोभ, लालच, क्रोध से रहित हो | 
निद्रा एवं सुषुप्ति की अवस्थाओं से आप मुक्त हो | आप काल से परे हो | 
आप मूलाधार चक्र में सदैव स्थित रहते हो | 
आप सर्वशक्तिमान् हो | ऋषि, मुनि, आपको ही ध्याते हैं | 
ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, इन्द्र सब आप ही हो  सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि, वायु  आप ही हो | 
आप ब्रह्म हो  ओंकार आप ही हो || ६ ||  

गण के शुरु अर्थात ' ग ' को पहले बोलें | 
उसके बाद वर्णों के रूप अर्थात ' अ ' को बोलें |
 उसके बाद अनुस्वार बोलें |
 इस प्रकार अर्धचन्द्र से युक्त ' गँ ' ओंकार से अवरुद्ध होने पर तुम्हारे बीज मन्त्र का स्वरुप  ( ओम् गँ ) है | गकार इसका पहला रुप है | 
अकार मध्य रुप है | 
अनुस्वार इसका अन्तिम रुप है तथा बिन्दु उत्तर रुप है | 
आवाज संधान है | संहिता सावेध है | 
ऐसी यह गणेश विद्या है | इस महामन्त्र के ऋषि गणक हैं | निचृग्दाय छन्द है | गणपति देवता हैं | वह महामन्त्र इस प्रकार है || ७ || 

ॐ गं गणपतये नमः 

एक दन्त नाम से ( भगवान् श्री गणेश ) को हम जानते हैं | 
विघ्न विनायक का हम ध्यान करते हैं | 
वही भगवान् गणेश जी हमें ज्ञान प्रदान करते हैं || ८ || 

एक दाँत व चार भुजाओं वाले पाश, अंकुश ऐवम् आशीर्वाद की मुद्रा में,
मूषक चिह्न की ध्वजा सहित, हाथी के समान मुख वाले, 
शरीर पर चन्दन लगाये, तरह - तरह के फूलों से सजे हुए, 
भक्तों के ऊपर दया करते एवं सन्त जनों को तारते हुए | 
सृष्टि के आदि में प्रकृति एवं पुरुष से परे
 भगवान् गणपति की जो नित्यप्रति आराधना करता है 
वह ऋषि सर्वश्रेष्ठ है || ९ || 

देवताओं में सर्वप्रथम पूज्य भगवान् श्री गणपति जी को नमस्कार | 
लम्बोदर भगवान् श्री गणपति जी को नमस्कार है |
 विघ्नों का विनाश करने वाले शिव पुत्र को नमस्कार | 
दुःखों को दूर करने वाले 
श्री गजानन को बारम्बार नमस्कार| || १० || 

यह अथर्वशीर्ष है | 
जो इसका नित्य स्मरण करता है वह ईश्वर को प्राप्त करने का अधिकारी होता है | 
यह सब प्रकार के दुःखों से छुटकारा तथा सुख - वैभव देने वाला है | 
यह पाँच प्रकार के महान् पापों से मुक्ति दिलाता है || ११ || 

सायंकाल में स्मरण करने से दिन के पापों का नाश होता है | 
सुबह स्मरण करने से रात्रि के पापों का नाश होता है | 
दोनों समय स्मरण करने से निष्पापी होता हैं | 
सब जगह स्मरण करने से निर्विघ्न होता है 
तथा मोक्ष का अधिकारी होता है || १२ || 

यह अथर्वशीर्ष उसी को देना चाहिए जो इसके योग्य हो | 
यदि कोई इसे लालचवश देता है वह पापी होता है | 
हजार बार अथर्वशीर्ष का स्मरण कर जिन-जिन कार्यों को मन में धारण 
करे उन-उन कार्यों की सिद्धि उससे प्राप्त करे || १३ || 

अथर्वशीर्ष मन्त्र द्वारा जो गणपति को स्नान करवाता है वह सिद्धि वाक् होता है | 
जो बिना भोजन किये चतुर्थी को इसका जाप करता है 
वह विद्यावान् होता है | 
यह अथर्वशीर्ष मंत्र है जो ब्रह्मादि देवताओं का वरण करता है 
तथा इसके जाप से मनुष्य विद्या से 
वंचित नहीं रहता || १४ || 

जो घास के अंकुरों  मन्त्र का जाप करता है 
वह कुबेर के समान धनवान् होता है | 
जो धान की खीलों से इसका जाप करता हैं वह यशश्वी व बुद्धिमान् होता है | 
जो लड्डूओं से जाप करता है वह मनोकामना प्राप्त करता है |
 जो अग्नि अर्थात् यज्ञ द्वारा जाप करता है 
उसे सब कुछ प्राप्त होता है || १५ || 

आठ ब्राह्मणों सहित इस मन्त्र का जाप करने से मनुष्य
 सूर्य केसमान तेजस्वी होता है | 
सूर्य ग्रहण के समय, बड़ी नदियों के सामने, मूर्ति के सामने
 जो इस मन्त्र का जाप करता है उसको इस मन्त्र की सिद्धि प्राप्त होती है | 
वह महाविघ्नों, महादोषों, महापापो से मुक्त होकर 
सर्वज्ञ हो जाता है ऐसा वेद और उपनिषदों में लिखा है || १६ || 

|| अस्तु ||   

  
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