निर्जला एकादशी व्रत विधि व कथा | Nirjala Ekadashi Vrat Vidhi V Katha |


निर्जला एकादशी कालः व्रत विधि व कथा 

निर्जला एकादशी  व्रत विधि व कथा | Nirjala Ekadashi  Vrat Vidhi V Katha |
निर्जला एकादशी  व्रत विधि कथा 

निर्जला एकादशी कालः व्रत कथा 

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
प्रत्येक वर्ष में चौबीस एकादशियां होती हैं।  

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। इस व्रत में भोजन करना और पानी पीना वर्जित है।
इसीलिए इसे निर्जला एकादशी कहते हैं।

धर्मग्रंथो के अनुसार इस एकादशी पर व्रत करने से वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य मिलता है।

व्रत विधि 


निर्जला एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत होकर सर्वप्रथम शेषशायी भगवान विष्णु की पंचोपचार पूजा करें।
इसके बाद मन को शांत रखते हुए ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। 

शाम को पुनः भगवान विष्णु की पूजा करें व रात में भजन कीर्तन करते हुए धरती पर विश्राम करें।
दूसरे दिन किसी योग्य ब्राह्मण को आमंत्रित कर उसे भोजन कराएं तथा जल से भरे कलश के ऊपर सफेद वस्त्र ढक कर और उस पर शर्करा ( शक्कर ) तथा दक्षिणा रखकर ब्राह्मण को दान दें।  

इसके अलावा यथाशक्ति अन्न, वस्त्र, आसन, जूता, छत्री, पंखा तथा फल आदि का दान करना चाहिए। इसके बाद स्वयं भोजन करें।
धर्म ग्रंथो के अनुसार इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को वर्ष भर की एकादशियों का फल प्राप्त होता है।
इस एकादशी का व्रत करने से अन्य तेईस एकादशियों पर अन्न खाने का दोष छूट जाता है 

एवं यः कुरुते पूर्णा द्वादर्शी पापनासिनीम | 

सर्वपापविनिर्मुक्तः पदं गच्छन्त्यनामयम || 


इस प्रकार जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है,वह समस्त पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।  

निर्जला एकादशी की कथा 

एक बार जब महर्षि वेदव्यास पांडवों को चारों पुरुषार्थ - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प करा रहे थे।
तब महाबली भीम ने उनसे कहा - पितामह। आपने प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है।  

मैं तो एक दिन क्या, एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता - मेरे पेट में वृक नाम की जो अग्नि है,
उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है।
तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्य व्रत से
वंचित रह जाऊंगा ? 

तब महर्षि वेदव्यास ने भीम से कहा - कुंतीनंदन भीम ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा।
निःसंदेह तुम इस लोक में सुख, यश और मोक्ष प्राप्त करोगे। 


यह सुनकर भीमसेन भी निर्जला एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए और समय आने पर यह व्रत पूर्ण भी किया।
इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।  


जानिए निर्जला एकादशी का महत्व 

1. निर्जला एकादशी के व्रत से साल की सभी 24 एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। 
2. एकादशी व्रत से मिलने वाला पुण्य सभी तीर्थों और दानों से ज्यादा है।
मात्र एक दिन बिना पानी के रहने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है।  

3. व्रती मृत्यु के बाद यमलोक न जाकर भगवान के पुष्पक विमान से स्वर्ग को जाता है। 
4. व्रती को स्वर्ग दान का फल मिलता है। हवन, यज्ञ करने पर अनगिनत फल पाता है। व्रती विष्णुधाम यानी वैकुण्ठ पाता है। 

5. व्रती चारों पुरुषार्थ यानी धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को प्राप्त करता है।  

6. व्रत भंग दोष - शास्त्रों के मुताबित अगर निर्जला एकादशी करने वाला व्रती, व्रत रखने पर भी भोजन में अन्न खाए,
तो उसे चांडाल दोष लगता है और वह मृत्यु के बाद नरक में जाता है।  

एकादशी व्रत धारण करने के नियम 

पूर्ण उपवास अपनी इन्द्रियों को नियंत्रित करने की बहुत ही उचित क्रिया है, परन्तु व्रत धारण करने का मुख्य कारण कृष्ण का स्मरण-ध्यान करना है।
उस दिन शरीर की जरूरतों को सरल कर दिया जाता है,
और उस दिन कम सो कर भक्तिमयी सेवा,
शास्त्र अध्ययन और जप आदि पर ध्यान केन्द्रित करने की अनुशंसा की गई हैं। 


व्रत का आरंभ सूर्योदय से होता है और अगले दिन के सूर्योदय तक चलता है, इसलिए अगर कोई इस बिच अन्न ग्रहण कर लेता है तो व्रत टूट जाता है।
वैदिक शिक्षाओं में सूर्योदय के पूर्व खाने की अनुशंषा नहीं की गयी हैं खासकर एकादशी के दिन तो बिलकुल नहीं।
एकादशी व्रत का पालन उस दिन जागने के बाद से ही मानना चाइये।
अगर व्रत गलती से टूट जाए तो उसे बाकि के दिन अथवा अगले दिन तक पूरा करना चाहिये। 

वे जान जो बहुत ही शख्ती से एकादशी व्रत का पालन करते हैं उन्हें पिछली रात्रि के सूर्यास्त के बाद से कुछ भी नहीं खाना चाहिये ताकि वे आश्वस्त हो सके कि पेट में एकादशी के दिन कुछ भी बिना पचा हुआ भोजन शेष न बचा हो। 

बहुत लोग वैसा कोई प्रसाद भी नहीं ग्रहण करते जिनमे अन्न डला हो।
वैदिक शास्त्र शिक्षा देते हैं कि एकादशी के दिन साक्षात् पाप ( पाप पुरुष ) अन्न में वास करता है, और इसलिए किसी भी तरह से उनका प्रयोंग नहीं किया जाना चाहिये ( चाहे कृष्ण को अर्पित ही क्यों न हो ) | 

एकादशी के दिन का अन्न के प्रसाद को अगले दिन तक संग्रह कर के रखना चाहिये या फिर उन लोगों में वितरित कर देना चाहिये जो इसका नियम सख्ती से नहीं मानते या फिर पशुओं को दे देना चाहिये 


एकादशी व्रत को कैसे तोड़ें 

अगर व्रत निर्जल (पूर्ण उपवास बिना जल ग्रहण किये ) किया गया है तो व्रत को अगले दिन अन्न से तोड़ना आवश्यक नहीं है। व्रत को चरणामृत ( वैसा जल जिससे कृष्ण के चरणों को धोया गया हो ),दूध या फल से वैष्णव पंचांग में दिए नियत समय पर तोड़ा जा सकता है |
 यह समय आप किस स्थान पर हैं उसके अनुसार बदलता रहता है | अगर पूर्ण एकादशी के स्थान पर फल, सब्जियों और मेवों के प्रयोग से एकादशी की गयी हैं तो उसे तोड़ने के लिए अन्न ग्रहण करना अनिवार्य हैं |
खाद्य पदार्थ जो एकादशी व्रत में खाए जा सकते हैं

श्रीला प्रभुपाद ने पूर्ण एकादशी करने के लिए कभी बाध्य नहीं किया, उन्होंने सरल रूप से भोजन करके जप एवं भक्तिमयी सेवा पर पूरा ध्यान केन्द्रित करने को कहा | निम्नलिखित वस्तुएं और मसाले व्रत के भोजन में उपयोग किये जा सकते हैं |
* सभी फल ( ताजा एवं सुखें );
 * सभी मेवें बादाम आदि और उनका तेल ;
* हर प्रकार की चीनी ;
 * किट्टू ;
* आलू, साबूदाना, शकरकंद ;
* नारियल ;
* जैतून ;
* दूध ;
* ताज़ी अदरख ;
* काली मिर्च और
* सेंधा नमक |

 एकादशी पर वर्जित खाद्य 

अगर अन्न का एक भी कण गलती से भी ग्रहण कर लिया गया हो तो एकादशी व्रत विफल हो जाता है |
इसलिए उस दिन भोजन पकाते समय काफी सावधानी बरतनी चाहिये और मसालों को केवल नए पेकिंग से, जो अन्न से अनछुए को,
से ही लेना चाहिये |
निम्नलिखित खाद्यों का प्रयोग एकादशी के दिन निषेध बताया गया है | 

सभी प्रकार के अनाज ( जैसे बाजरा, जौ, मैदा, चावल और उरद दाल आटा ) और उनसे बनी कोई भी वास्तु , 

मटर, छोला, दाल और सभी प्रकार की सेम, उनसे बनी अन्य वस्तुएं जैसे टोफू, नमक,बेकिंग सोडा, बेकिंग पावडर, कस्टर्ड और
 अन्य कई मिठाइयों का प्रयोग नहीं किया जाता क्योंकि उनमें कई बार चावल का आटा मिला होता है , तिल ( सत-तिल एकादशी अपवाद है, उस दिन तिल को भगवान को अर्पित भी किया जाता है और उसको ग्रहण भी किया जा सकता है )और मसालें जैसे कि हींग, लौंग, मेथी,
सरसों, इमली, सौंफ इलायची और जायफल | 

एकादशी के दिन व्रत धारण करना कृष्ण भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तप है और यह आध्यात्मिक प्रगति को बढ़ाने के लिए किया जाता है | 
बिलकुल निराहार व्रत करके कमजोर होकर अपनी कार्यों एवं भक्तिमयी सेवाओं में अक्षम हो जाने से बेहतर है थोड़ा उन चीजों को खाकर व्रत करना जो व्रत में खायी जा सकती हैं | 

|| अस्तु || 






  

 




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